लखनऊ : भारतीय शोधकर्ताओं ने एक नई चिकित्सा पद्धति विकसित की है, जिससे चूहों में पार्किं संस जैसे लक्षणों को ठीक करने में मदद मिली है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस खोज से एक दिन मानव रोगियों के लिए नई चिकित्सा पद्धति का ईजाद हो सकता है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि मस्तिष्क में के संचार से इस बीमारी के पशुओं पर किए गए परीक्षण में राहत मिल सकती है।
लखनऊ स्थित सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकॉलोजी रिसर्च के रजनीश कुमार चतुर्वेदी और उनके सहयोगी ने कहा, “हमने मस्तिष्क में डोपेमाइन का संचार करने के लिए न्यूरोट्रांसमीटर डोपेमाइन पीएलजीए नैनोपार्टिकल्स (डीएएनपी) विकसित की है।” इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में आमतौर पर 60 या इससे अधिक साल की उम्र में लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि अन्य समस्याओं में पार्किसंस बीमारी से ग्रस्त लोगों के मस्तिष्क में डोपेमाइन की मात्रा में कमी आ जाती है।
डोपेमाइन एक रासायनिक प्रक्रिया है, जो दिमाग की कोशिकाओं को एक-दूसरे से जोड़ने में मदद करता है। इससे शरीर की सामान्य प्रक्रियाओं में मदद मिलती है। मस्तिष्क में इसका स्तर घटने पर यह कंपन और चलने-फिरने से संबंधित दिक्कतों का कारण बनता है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने अभी यह पता नहीं लगाया है कि किस तरह से डोपेमाइन को सुरक्षित रूप से मानव मस्तिष्क में स्थानांतरित करें।