मुंबई: शिवसेना ने गत रविवार को अपने मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में मुसलमानों से मताधिकार वापस लेने की बात कही और तर्क दिया कि इससे मुस्ल‍िम वोट बैंक की राजनीति खत्म होगी लेकिन जब विवाद गहराया तो पार्टी ने लेख पर नरम रुख भी अख्तियार कर लिया।

शिवसेना की विधान परिषद सदस्य और प्रवक्ता नीलम गोरे ने कहा कि लेख में यह कहने का प्रयास किया गया है कि जीवन के हर क्षेत्र में विकास के लिए जरूरी है कि कुछ नेता तुष्टीकरण की राजनीति को छोड़ें क्योंकि यह मुस्लिमों के हित में नहीं है। ये लोग समुदाय की वास्तव में मदद किए बिना उन्हें केवल गुमराह कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अगर राजनीति के लिए मुसलमानों का केवल इस तरह से इस्तेमाल किया जाता है तो उनका कभी विकास नहीं हो सकता। जब तक मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल होते रहेंगे, उनका कोई भविष्य नहीं होगा और इसलिए बालासाहब ने एक बार कहा था कि मुस्लिमों के मतदान के अधिकार को वापस लिया जाए।

पार्टी ने स्पष्ट किया कि शि‍वसेना तुष्टीकरण की राजनीति और मुस्लिम महिलाओं के बुनियादी अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ है। गोरे ने कहा कि लेख में ऐसा नहीं चाहा गया है कि मुस्लिमों के मताधिकार को छीन लिया जाए, लेकिन ओवैसी जैसे लोगों के लिए मुस्लिमों की महरम रहने की भावना को पोषित करते रहना ठीक नहीं है, वे समग्र विकास से महरूम रहे हैं और निजी फायदों के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है और उन्हें गुमराह किया जा रहा है।