पंजाब कांग्रेस की उठा-पटक के बीच आखिरकरार शनिवार को कैप्टन अमरिंदर सिंह से सीएम की कुर्सी छिन गई। कैप्टन साल 2017 में पंजाब के सीएम बने थे। हालांकि, शनिवार को जो हुआ, उसका पहला संकेत कैप्टन को सीएम बनने के कुछ महीनों के अंदर ही मिल गया था। इसके बाद कई संकेत ऐसे थे, जो यह बता रहे थे कि कैप्टन के खिलाफ अंदरखाने गुस्सा बढ़ता जा रहा है और अपनी ही टीम पर वह पकड़ खोते जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत से मुंह मोड़े रखना कैप्टन के लिए सबसे बड़ा तूफान लेकर आया और इसके सूत्रधार भी उनकी अपनी ही पार्टी के विधायक रहे।

दरअसल, जिस साल अमरिंदर सिंह सीएम बने, उसी साल यानी 8 अगस्त 2017 को 33 विधायकों ने उन्हें चिट्ठी लिखकर पूर्व अकाली मंत्री बिक्रम सिंह मजेठिया के खिलाफ एक ड्रग केस में जांच की मांग की थी। हालांकि, इस चिट्ठी में कार्रवाई नहीं की गई। साल 2017 के उपचुनावों के दौरान अमरिंदर सिंह ने गुटका साहिब हाथ में लेकर राज्य से नशा खत्म करने की शपथ ली थी। हालांकि, पंजाब इस मामले में कुछ खास आगे नहीं बढ़ पाया। 

साल 2015 में गुरुग्रंथ साहिब बेअदबी के खिलाफ प्रदर्शन कर रही भीड़ पर पंजाब पुलिस ने फायरिंग की थी। इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हुए थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह पर इस मामले की जांच कराने का लगातार दबाव बनाया गया। साल 2017 में अमरिंदर सिंह ने जस्टिस रंजीत सिंह की अध्यक्षता में एक कमिशन भी बनाया लेकिन अभी तक इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।