अलीगढ़ । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय की आधारशिला रखने के साथ चुनावी मोर्चे पर जाटलैंड की राजनीति को भी साधने की कोशिश की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड की सियायत में आजादी के संघर्ष के गुमनाम चेहरे हो गए राजा महेंद्र प्रताप सिंह अब चर्चा में हैं। उनकी आभा में भाजपा विरासत की सियासत की जंग में अपनी जमीन मजबूत कर रही है। इसमें जाट राजनीति के सम्मानित नाम सर छोटूराम व चौधरी चरण सिंह भी शामिल हैं। इसे किसान आंदोलन के चलते नाराज माने जा रहे जाट समुदाय को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति सत्ता बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाती रही है। अजगर व मजगर समीकरणों ने कई सरकारें बनाई और बिगाड़ी। वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में छह से आठ फीसदी जाट समुदाय हैं, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह 17 फीसद है। विधानसभा की 120 सीटों में जाट फैले हुए हैं, लेकिन वह लगभग 50 सीटों के चुनावी समीकरण बनाते-बिगाड़ते हैं। विधानसभा में अभी 14 जाट विधायक हैं। इनमें अधिकांश भाजपा के हैं और जाट विरासत की राजनीति करने वाली रालोद के पास मात्र एक विधायक है। दरअसल, भाजपा की रणनीति 2022 का विधानसभा चुनाव जीतने और 2024 के लिए जमीन मजबूत करने पर केंद्रित है। 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगों के बाज जाटलैंट की सियासत बदली और मुस्लिम जाट समीकरण भी टूटा। इसका लाभ भाजपा को मिला। अब किसान आंदोलन में नए समीकरण बनने से भाजपा की चिंताएं बढ़ी हुई हैं। कहीं जाट समर्थन खिसक न जाए, ऐसे में जाट समुदाय को उनके नायकों के साथ उभारने की कोशिश की जा रही है। अलीगढ़ का कार्यक्रम वैसे तो सरकारी था, लेकिन तासीर राजनीतिक रही। संदेश भी पश्चिम से पूर्व तक के लिए था। राजा महेंद्र सिंह व सर छोटूराम जाट राजनीति की सियासत को आगे बढ़ाते हैं तो महाराजा सुहेलदेव पूर्वी क्षेत्र में मजबूत राजभर समुदाय के प्रेरक नायक रहे हैं। मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही इन तीनों का खास जिक्र कर साफ किया है कि राजनीति में भाजपा के निशाने और लक्ष्य क्या हैं। मोदी के भाषण से जो नई बात जाटलैंड में अब नीचे तक जाएगी, उसमें राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जिक्र अहम होगा। एक तरह से राजा महेंद्र सिंह के नाम पर भी अब वोटों की राजनीति होगी। पश्चिम उत्तर प्रदेश का जाट समुदाय पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के साथ खड़े होकर गर्व का अनुभव करता है, लेकिन अब उसके लिए एक और गर्व की बात राजा महेंद्र प्रताप सिंह भी होंगे, जिन्होंने आजादी के संघर्ष में देश की सीमाओं से पार जाकर लोगों को भारतीय समुदाय को जोड़ कर अफगानिस्तान में देश की पहली निर्वासित सरकार बनाई। राजा महेंद्र प्रताप सिंह इसके राष्ट्रपति थे। इतना ही नहीं मोदी ने इसमें राजा महेंद्र प्रताप सिंह का संबंध गुजरात के श्यामजी कृष्ण वर्मा और लाला हरदयाल के साथ जोड़कर इसे राष्ट्रीय एकता के भाव के साथ उभारा भी है।