नई दिल्ली | उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में टू या फिर सिंगल चाइल्ड पॉलिसी पर घमासान मचा है। आम जनता में एक डर ये भी है कि इससे बुआ-मौसी जैसे आत्मीय रिश्ते खत्म हो जाएंगे।
बता दें कि आबादी के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भारत में आबादी अगर इसी रफ्तार से बढ़ती रही, तो वर्ष 2027 तक चीन को पछाड़ कर सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। इस बीच, उत्तर प्रदेश और असम ने ऐसे कानून का प्रस्ताव दिया है, जो कपल्स को बच्चों की संख्या दो तक सीमित करने को मजबूर करेगा क्योंकि दो से अधिक बच्चे होने पर उन्हें चुनाव लड़ने, सरकारी नौकरी के लिए आवेदन और सब्सिडी समेत अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ेगा। कर्नाटक ने भी इसी तरह के कानून की पहल की है। फिलहाल, देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किया जाए या नहीं, इस पर जंग जारी है।
जनसंख्या नियंत्रण कानून की कितनी जरूरत?
देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर बहस जारी है। ऐसे में यह देखना है कि क्या देश को सच में जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत है? स्वास्थ्य मंत्रालय की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार, मणिपुर और मेघालय को छोड़कर अन्य राज्यों में प्रजनन दर 2.1 से नीचे आ गई है। वर्ष 2025 तक देश में प्रजनन दर गिरकर 1.9 हो जाएगी, जबकि जनसंख्या स्थिरता के लिए प्रजनन दर का 2.1 होना जरूरी है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के मुताबिक, देश में अभी 26.8 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले कर दी जाती है, जिससे उनके प्रजनन की उम्र 15-49 के बीच कई बार मां बनने का खतरा रहता है। इनमें से 6.1 फीसदी लड़कियां तो 15-19 साल के बीच में ही मां बन जाती हैं। उनके बच्चों के बीच के अंतर को बढ़ाने और बच्चों की संख्या सीमित रखने के लिए जनसंख्या नियंत्रण नीति की जरूरत है।विशेषज्ञों के मुताबिक, बच्चों के जन्म के बीच अंतराल बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक करें, यह जनसंख्या को नियंत्रित करने और शिशु मृत्यु दर को रोकने में मददगार साबित होगा।जनसंख्या नियंत्रण कानून से क्या हो सकते हैं नुकसानएक्सपर्ट मानते हैं कि अगर कानून लागू होता है, तो यह लिंग पहचान कर गर्भपात कराने के मामलों में बढ़ोतरी कर सकता है।
लड़का और लड़कियों के औसत अनुपात की खाई को और बढ़ा सकता है, जिससे महिलाओं की तस्करी और जबरन कराए जाने वाले देह व्यापार के मामले भी बढ़ सकते हैं।
देश में उम्र-दराज लोगों की संख्या बढ़ जाएगी, जिससे कामकाज पर असर होगा।
महिलाएं गर्भपात के लिए अवैध दवाओं का इस्तेमाल कर सकती हैं, जिनका बुरा प्रभाव उन्हें जीवन भर झेलने पड़ सकता है।
गर्भपात कराने के लिए फर्जी डॉक्टर के चंगुल में भी फंस सकती हैं, जिससे उनकी प्रजनन क्षमता खत्म होने का भी डर रहेगा।