धर्म के साथ घटना उस समय की है जब शास्त्री जी गृहमंत्री थे। यह तो सब जानते हैं कि शास्त्री जी बहुत सादगी पसंद और मितव्ययी थे। वह अपने और परिवार के ऊपर एक भी पैसा अनावश्यक नहीं खर्च करते थे। नियमों का कड़ाई से पालन करना उनकी आदत थी।
एक समय में वह इलाहाबाद में एक किराए के मकान में रहते थे। किसी कारणवश मकान मालिकको उस मकान की आवश्यकता पड़ी। उसने शास्त्री जी से मकान खाली करने का अनुरोध किया। शास्त्री जी तो सदैव खुद से अधिक दूसरों का याल रखते थे।
उन्होंने तुरन्त मकान खाली कर दिया। साथ ही दूसरे मकान के लिए आवेदन कर दिया।का फी समय बीत गया लेकिन शास्त्री जी को मकान नहीं मिला। तब उनके किसी मित्र ने अधिकारियों से पूछताछ की।
तब अधिकारियों ने बताया कि शास्त्री जी के स त निर्देश हैं कि नियमानुसार जिस नंबर पर उनका आवेदन दर्ज है, उसी क्रम में उनको मकान आबंटित किया जाए। किसी तरह का पक्षपात नहीं किया जाए।
शास्त्री जी के पूर्व 176 लोगों के आवेदन होने कारण देश के तत्कालीन गृहमंत्री को ल बे समय तक मकान के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी लेकिन उन्होंने किसी भी प्रकार की वरीयता या पद का दुरुपयोग अपने लिए नहीं किया।