कहानी - महाभारत का युद्ध चल रहा था। 9 दिन बीत चुके थे। दुर्योधन ने भीष्म पितामह से शिकायत करते हुए कहा, 'आप ठीक से युद्ध नहीं कर रहे हैं। हमारे पक्ष के कई राजा मारे गए हैं। मेरे कई भाई मारे जा चुके हैं, लेकिन अब तक एक भी पांडव नहीं मरा है। आप जिस तरह से युद्ध कर रहे हैं, उसे देखकर ये लगता है कि आप कौरवों की ओर से नहीं, बल्कि पांडवों की ओर से युद्ध कर रहे हैं।'
दुर्योधन इसी तरह हर रोज भीष्म पितामह को ताने मारता था और भीष्म सह लेते थे, लेकिन उस दिन तानों से दुखी होकर भीष्म ने दुर्योधन से कहा, 'कल के युद्ध में या तो मैं मरूंगा या मैं पांडवों का वध कर दूंगा। मैंने तेरा अन्न खाया है। उसकी कीमत जरूर चुकाऊंगा।'
ये सुनकर दुर्योधन को संतोष हो गया कि ये तो मरेंगे नहीं, पांडव मर जाएंगे। अन्न का प्रभाव था ये और जब भीष्म अर्जुन से युद्ध हारे तो वे बाणों की शय्या पर आ गए थे। युद्ध के बाद जब पांडव भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे तो वे धर्म का ज्ञान दे रहे थे। उस समय द्रौपदी ने आपत्ति जताई।
द्रौपदी ने कहा, 'आज आप धर्म का ज्ञान दे रहे हैं, लेकिन ये ज्ञान उस समय कहां गया था, जब भरी सभा में मैं अपमानित हो रही थी?'
भीष्म पितामह बोले, 'दुर्योधन का अन्न खाने से मेरा मन उससे बंध गया था। ध्यान रखें, अन्न किसका है, किसके हाथ से बना है, किस धन से वह भोजन कमाया गया है? क्योंकि अन्न अपना असर दिखाता है।'
सीख - जब भी कहीं भोजन करें तो ध्यान रखें वह अन्न कैसे काम से कमाया गया है। अगर अन्न अधर्म से कमाया गया है तो उसे खाने से बचना चाहिए। भोजन के संबंध में ये सावधानी जरूर रखें।