उदयपुर. देश ने कुछ दिन पहले ही आजादी की 75वीं वर्षगांठ का जश्न मनाया है. लाल किले (Red Fort) से लेकर ग्राम स्तर तक कई आयोजन किये गए. जश्न की इस चकाचौंध के बीच हम आपको एक ऐसी तस्वीर से रू-ब-रू करवाने जा रहे हैं, जिसे देख आपके भी सोच में पड़ जाएंगे. उदयपुर (Udaipur) जिले के सरे गांव के बाशिंदे डिजिटल इंडिया के इस दौर में भी लोग मोबाइल नेटवर्क की कमी से जूझ रहे हैं. यहां के ग्रामीण नरेगा की मजदूरी के लिए पहाड़ पर नहीं चढ़ते बल्कि राशन जैसी जरुरी चीज के लिये सरकारी सिस्टम को फॉलो करने की खातिर ओटीपी लेने के लिये भी उन्हें पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है.केंद्र सरकार भले ही डिजिटल इंडिया के माध्यम से हर गांव-ढाणी तक इंटरनेट पहुंचाने की कवायद कर रही हो, लेकिन सरकारी तंत्र के नुमाइंदे अपनी उदासीनता की वजह से इस प्रयास को विफल करने में लगे हैं. आजादी के 75 साल बाद भी हजारों लोगों की आबादी के बावजूद इस सरे गांव में किसी भी कंपनी का टावर नहीं है.
राशन लेने के लिए पहाड़ी पर जाकर ओटीपी लेना पड़ता है
महीने में राशन की तारीख नजर आते ही इस गांव के लोगों के चेहरों पर चिंता की लकीरें खिंच आती है. गांव के बहादुर सिंह भाटी के मुताबिक राशन पाने की जद्दोजहद इन लोगों को एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर भटकाती है. क्योंकि गांव में कभी इस पहाड़ी पर नेटवर्क आता है तो कभी दूसरी पहाड़ी पर. राशन के लिए ग्रामीणों को 900 फ़ीट की पहाड़ी पर चढ़ कर मशीन पर ओटीपी लेना पड़ता है. इसके बाद वे पर्ची के माध्यम से राशन ले पाते हैं.
सरे गांव के बच्चे नेटवर्क के अभाव में ऑनलाइन नहीं पढ़ पा रहे
इस परेशानी से गांव वाले कई बरस से दो चार हो रहे हैं. लेकिन इनकी समस्या को समझने वाला कोई नहीं है. मोबाइल नेटवर्क न होने की वजह से ग्रामीणों को राशन पाने में दिक्कत तो होती ही है. साथ ही गांव के बच्चे ऑनलाइन क्लासेज भी अटेंड नहीं कर पाते हैं. कोरोना के चलते बच्चों ने पिछले डेढ़ साल से अधिक के समय में अभी तक पढ़ाई नहीं की.
राशन डीलर को राशन का सामान देने में आ रही परेशानी
दूसरे गावों के बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से अपनी पढ़ाई कर रहे हैं. लेकिन सरे गांव के बच्चे मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. यही नहीं गाव में कोई आपदा हो या कोई मेडिकल इमरजेंसी. इनके पास एक दूसरे से सम्पर्क का कोई साधन नहीं है. राशन डीलर किशन सिंह भाटी के मुताबिक इस समस्या के चलते 4-4 व्यक्तियों का स्टाफ रखना पड़ता है. जब जाकर एक व्यक्ति पहाड़ी पर चढ़कर ऑनलाइन ओटीपी लेता है तो 2 अन्य लोग राशन देने में सहायता करते हैं.