नई दिल्ली : जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जवाब की मांग पर विपक्षी सदस्यों के अड़े रहने की वजह से राज्यसभा में गुरुवार को लगातार चौथे दिन कामकाज ठप रहा तथा सदन में मोदी की मौजूदगी के बावजूद गतिरोध खत्म नहीं हुआ। सरकार की ओर कहा गया कि वह चर्चा के लिए तैयार है लेकिन इसका जवाब गृह मंत्री राजनाथ सिंह ही देंगे।
विपक्ष द्वारा अपनी मांग पर अड़े रहने के कारण हुए सदन की बैठक चार बार के स्थगन के बाद दोपहर दो बजकर करीब 50 मिनट पर पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई। सदन में आज प्रश्नकाल के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मौदी मौजूद थे और एक समय ऐसी स्थिति बनती दिखी कि आज इस मुद्दे पर गतिरोध टूट जायेगा। लेकिन चर्चा से पहले विपक्ष ने सरकार से यह आश्वासन दिये जाने की मांग की कि चर्चा का जवाब प्रधानमंत्री देंगे, जिसपर सहमति नहीं बन पाई।
विपक्षी सदस्यों की मांग पर सदन के नेता अरुण जेटली ने कहा कि सरकार चर्चा के लिए तत्काल तैयार है लेकिन विपक्ष यह कैसे तय कर सकता है कि चर्चा किस तरह से होगी और चर्चा का जवाब कौन देगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस ओर संकेत करते हुए कहा सदन में भोजनावकाश के पहले धमा’तरण के मुद्दे पर चर्चा के लिए सहमति लगभग बन गई थी। चूंकि यह मुद्दा गृह मंत्रालय से जुड़ा है इसलिए चर्चा का जवाब देने के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं। उन्होंने कहा भोजनावकाश से पहले प्रधानमंत्री सदन में मौजूद थे। उस समय इस बात की संभावना थी कि प्रधानमंत्री चर्चा में हस्तक्षेप करते। लेकिन प्रधानमंत्री की मौजूदगी में सम्मानित विपक्ष के सदस्यों ने इस विषय पर चर्चा नहीं होने दी।
कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा कि राज्यसभा में जो गतिरोध चल रहा है वह सरकार की हठधर्मिता के कारण है। सरकार अहंकार दिखा रही है। यदि प्रधानमंत्री सदन में आकर जबरन धर्मान्तरण के मुद्दे पर चर्चा को सुनें और अपनी बात कहें तो मौजूदा गतिरोध समाप्त हो सकता है। जारी जेटली ने विपक्ष के गतिरोध की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह सरकार का अहंकार नहीं बल्कि संख्याबल का अहंकार है। राज्यसभा में सत्ता पक्ष अल्पमत में है। इस पर माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि लोकसभा में बहुमत की तानाशाही है। तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय ने कहा कि प्रधानमंत्री को इस सदन में आकर बयान देना चाहिए और उसके बाद कामकाज सामन्य ढंग से चलने लगेगा।
जदयू के शरद यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री इस मामले को प्रतिष्ठा का प्रश्न क्यों बनाये हुए हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को सदन में आकर इस तरह के मामलों में कठोर कार्रवाई का आश्वासन देना चाहिए। बसपा प्रमुख मायावती ने प्रधानमंत्री के जवाब की मांग करते हुए कहा इस मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जबरन धमा’तरण को लेकर देश में गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है। इस पर संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा देश में शांति है लेकिन कुछ लोग यह मुद्दा उठा कर भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है और कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ उन्हें (राज्य को) कार्रवाई करनी चाहिए। सदन की बैठक भोजनावकाश के बाद जब दोपहर दो बजे शुरू हुई तो उप सभापति पी जे कुरियन ने माकपा के पी राजीव से कार्य स्थगन के नियम 267 के तहत सामाजिक तानेबाने पर प्रहार करने वाली घटनाओं पर चर्चा शुरू करने को कहा।
इससे पहले सदन में विपक्ष एवं सत्ता पक्ष ने इस चर्चा के विषय में सामाजिक तानेबाने या सांप्रदायिक तानेबान का शब्द इस्तेमाल किये जाने को लेकर अपने अलग अलग मत रखे। राजीव ने कहा कि वह चर्चा शुरू करना चाहते हैं लेकिन वह यह भी ध्यान दिलाना चाहते हैं कि यह मुद्दा न केवल गृह मंत्रालय बल्कि अन्य मंत्रालयों से भी जुड़ा है। उन्होंने कहा कि चूंकि मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी होती है इसलिए इतने सारे मंत्रालयों से जुड़े इस विषय पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री ही जवाब दे सकते हैं और उन्हें सदन में होना चाहिए। हंगामे के बीच ही संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने विपक्ष पर पिछले चार दिन से चर्चा से बचने और बार बार नए बहाने करने का आरोप लगाया। कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा कि सदन संचालन के नियमों के तहत यदि सरकार का कोई मंत्री सदन में आश्वासन देता है और उसके आश्वासन का उल्लंघन होता है तो ऐसे मामलों में संबद्ध व्यक्ति ही जवाब दे सकता है। शर्मा ने कहा कि मौजूदा मामले में प्रधानमंत्री ने दोनों सदनों में एक आश्वासन दिया था और उसका उल्लंघन हुआ है। इसलिए उन्हें जवाब देने के लिए सदन में आना चाहिए।
नकवी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने सदन में ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया है जिसका उल्लंघन हुआ हो। सदन में आज कांग्रेस और तृणमूल के कई सदस्यों ने प्रधानमंत्री को सदन में बुलाने की मांग करते हुए आसन के समक्ष आकर नारेबाजी की। गौरतलब है कि पिछले तीन दिन भी सदन की कार्यवाही प्रधानमंत्री के बयान की मांग को लेकर विपक्ष के अड़ने के कारण उत्पन्न गतिरोध के चलते बाधित रही थी।