कोलकाता । माकपा को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में करारी हार मिली थी, इस लेकर पार्टी की केंद्रीय समिति ने समीक्षा की। बता दें कि बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान माकपा ने कांग्रेस और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) के साथ गठबंधन किया था।इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। साढ़े तीन दशक तक बंगाल पर राज करने वाली माकपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इस बार चुनाव में फिर से ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी। जबकि भाजपा दूसरे पायदान पर रही, लेकिन माकपा ने जनता के बीच में अपनी कोई भी छाप नहीं छोड़ सकी। 
रिपोर्ट्स के मुताबिक सीताराम येचुरी और प्रकाश करात ने बंगाल में मिली करारी हार की समीक्षा की।इसमें पता चला कि आखिरी माकपा को हार का सामना क्यों करना पड़ा। समीक्षा  बैठक में महसूस किया गया कि बंगाल की जनता ने अब्बास सिद्दीकी की आइएसएफ के साथ गठबंधन को स्वीकार नहीं किया क्योंकि आइएसएफ मुस्लिम संगठन के रूप में अपनी पहचान को खत्म कर पाने में कामयाब नहीं हुआ है।
इसके अलावा माकपा नेताओं ने महसूस किया है, कि गठबंधन कभी भी स्थायी समाधान नहीं होता है।समीक्षा के दौरान माकपा नेताओं को लगता है, कि सिंगुर-नंदीग्राम आंदोलन को मजबूती के साथ आगे बढ़ाने वाले नारे 'कृषि हमारी नींव, उद्योग हमारा भविष्य का इस्तेमाल नहीं करना था। क्योंकि इस नारे ने जनता को पुरानी यादों को ताजा करने में मदद की है। जिसकी वजह से ग्रामीणों के बीच से माकपा की पकड़ कमजोर हो गई थी। 
इतना ही नहीं प्रदेश की माकपा इकाई सही ढंग से ममता सरकार की आलोचना भी नहीं कर पाई थी। गौरतलब है कि पैर में प्लास्टर बंधे होने के बावजूद ममता ने ताबड़तोड़ रैलियां करके भाजपा समेत सभी विपक्षी दलों के खिलाफ वोटबैंक का भुनाया था। इतना ही नहीं कांग्रेस के आला नेतृत्व ने भी बंगाल में जीत का प्रयास नहीं किया क्योंकि उन्हें लगता था कि मामला त्रिकोणीय हो जाएगा।इसके बाद भाजपा को फायदा पहुंच सकता है।