मुंबई। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बुधवार को कहा कि केंद्र सरकार आर्थिक तंगी से जूझ रहे रेल महकमे की जरूरतों को पूरा करने के लिए निजी पूंजी निवेश का विकल्प आजमाना चाहती है। रेल यूनियनों के दावों के विपरीत सरकार की मंशा इसके निजीकरण की नहीं है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए एशिया सोसायटी इवेंट को संबोधित करते हुए प्रभु ने कहा कि कुछ लोगों खासकर यूनियनों को इस बात की समझ नहीं है कि निजी पूंजी निवेश और निजीकरण में फर्क होता है।
कुछ ही समय पहले रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने वाले प्रभु ने कहा कि देश, आम जनता, रेल विभाग और कर्मचारियों की बेहतरी के लिए हमें निजी पूंजी निवेश की बात मान लेनी चाहिए। हम रेल को एक जीवंत, स्थायी और कुशल व्यापार संगठन बनाना चाहते हैं।
सरकार सामाजिक भलाई के अपने एजेंडे से किसी कीमत पर पीछे नहीं हटेगी। पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर जैसे दुर्गम और अशांत राज्यों में रेल नेटवर्क के विस्तार पर प्रभु ने कहा कि यह हमारी सामाजिक प्रतिबद्धता का उदाहरण है। इन इलाकों में नेटवर्क बिछाने का खर्चा सामान्य से दस गुना ज्यादा पड़ता है। इसके बावजूद जनता की इच्छा, सामरिक जरूरत और राष्ट्रीय एकता के लिए इन क्षेत्रों में निवेश की जाती है।
गौरतलब है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से रेलवे में विदेशी और निजी पूंजी निवेश पर काफी चर्चा हो रही है। 20 लाख कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली रेल यूनियनें इसका विरोध कर रही हैं। हाल ही में दो यूनियनों ने कर्मचारियों के पीएफ का पैसा रेल नेटवर्क के विस्तार के काम में लगाने का प्रस्ताव रखा है।
सुरेश प्रभु ने रेलवे के निजीकरण की आशंकाओं को खारिज किया
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