सुसंस्कारिता के चार आधार हैं- समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी। इन्हें आध्यात्मिक-आंतरिक वरिष्ठता की दृष्टि में उतना ही महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए जितना शरीर के लिए अन्न, जल, वस्त्र और निवास अनिवार्य समझा जाता है। समझदारी का अर्थ है- दूरदर्शी विवेकशीलता अपनाना। आमतौर से लोग तात्कालिक लाभ को सब कुछ मानते हैं और उसे पाने के लिए कोई गलत कदम उठाने में भी संकोच नहीं करते। इससे भविष्य अंधकारमय बन जाता है।
अपराधी तत्वों में से अधिसंख्य इसी मनोवृत्ति के होते हैं। दूरदर्शिता, विवेकशीलता उस अनुभवी किसान की गतिविधियों जैसी हैं, जिनके अनुसार खेत जोतने, बीज बोने, खाद पानी देने, रखवाली करने में आरंभिक हानि और कष्ट सहने को शिरोधार्य किया जाता है। दूरदर्शिता बताती है कि इसका प्रतिफल उसे समयानुसार मिलने ही वाला है। एक बीज के दाने के बदले कई गुना दाने मिलने वाले हैं। संयम और सत्कार्य ऐसी ही बुद्धिमत्ता है। पुण्य परमार्थ में भविष्य को उज्ज्वल बनाने वाली संभावनाएं निहित हैं। संयम का प्रतिफल वैभव और पौरुष के रूप में दृष्टिगत होने ही वाला है। दूरबीन के सहारे दूर तक की वस्तुओं को देखा जा सकता है और उस जानकारी के आधार पर अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लिया जा सकता है। अध्यात्म की भाषा में इसी को तृतीय नेत्र खुलना कहते हैं, जिसके आधार पर विपत्तियों से बचना और उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं का सृजन संभव है।
कथनी-करनी को एक सा रखना ईमानदारी है। सहयोग व सद्भाव अर्जित करने के लिए ईमानदारी प्रमुख आधार है। इसे अपने व्यवसाय में अपनाकर अनेक लोगों ने छोटी स्थिति से उठकर बड़ी सफलता पाई है। बड़े उत्तरादायित्वों को उपलब्ध करने और उसका निर्वाह करने में ईमानदार ही सफल होते हैं। सुसंस्कारिता का तीसरा पक्ष है- जिम्मेदारी। गैर जिम्मेदार उत्तरदायित्वों से निर्लज्जतापूर्वक इंकार कर सकते हैं,पर जिम्मेदार लोगों को अपने उत्तरदायित्वों का नियमबद्ध होकर समय पर निर्वाह करना पड़ता है। जो स्वास्थ्य सुरक्षित रखने की, जीवन संपदा का श्रेष्ठतम सदुपयोग करने की, लोक परलोक उत्कृष्ट बनाने की जिम्मेदारी निभाते हैं, वे ही संतोष, यश आरोग्य का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। चौथा व अंतिम चरण है-बहादुरी। दैनिक जीवन में अनेकानेक उलझनों से निपटने के लिए उपयुक्त साहस आवश्यक है, अन्यथा हड़बड़ी में समाधान का सही उपाय नहीं सूझेगा।
जीवन के चार आधार
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