
ग्वालियर-चंबल में सिंध नदी सैकड़ों गांवों की खुशहाली बहा ले गई। अब बड़ा संकट दो जून की रोटी और पीने का पानी का है। सड़कें बह गई हैं, इसलिए प्रशासन चाहता है कि पीड़ित राहत कैंपों में आएं, जबकि पीड़ित गांव छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि जन्म से यहीं रहे, अब छोड़कर कैसे जाएं। चूल्हा रिश्तेदारों के यहां से आए राशन के भरोसे जल रहा है।
भिंड जिले के रौन तहसील के ग्राम कुसमिया खैरा गांव की हालत काफी खराब है। यहां पानी उतरने के बाद ग्रामीण जब वापस लौटे तो न खाने के लिए अनाज बचा और न रहने का ठिकाना। घर-गृहस्थी सिंध की बाढ़ के पानी ने उजाड़ दी। यह गांव प्रशासन अफसरों की पहुंच से दूर बना हुआ है। पीड़ितों के लिए भोजन की व्यवस्था नाते-रिश्तेदार और दूसरे गांव के लोग कर रहे हैं।
गांव में जब टीम पहुंची तो हालत खराब मिले। कच्चे घर तबाह हो चुके हैं। पक्के घरों में अनाज और भूसा पानी के कारण सड़ चुका है। यह गांव दो दिन तक पानी में डूबा रहने के कारण लोगों की 50 साल पुरानी गृहस्थी उजड़ गई। जब ग्रामीणों से बातचीत की तो उनका कहना था कि 1971 में सिंध ने रौद्र रूप धारण किया था। तब ये गांव बच गया था। गांव के कई बुजुर्गों का कहना है कि सिंध नदी का पहली बार ऐसा रौद्र रूप देखा। सिंध नदी से काफी दूरी और ऊंचाई पर होने की वजह से गांव के किसी महिला-पुरुष को इस बात की आशंका नहीं थी कि बाढ़ घर-द्वार को उजाड़ जाएगा। अब यह लोग, दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं।
पीने तक पानी नहीं
इस गांव में पीने तक का पानी नहीं है। गांव के कुएं और हैडपंप में बाढ़ का पानी आ जाने से वो गंदा पानी उगल रहे हैं। ऐसे में ग्रामीणों को यही पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
टूटे मकानों में तलाश रहे सामान
अब ग्रामीण यहां टूट चुके मकानों में अपना घर-गृहस्थी का सामान तलाश रहे हैं। वे टूटे मकान को देखकर कह रहे हैं कि जिंदगी नई तरीके से बसानी पड़ेगी।
खाने पीने के लिए कुछ नहीं आया
गांव के भगवानदास हरिजन का कहना है कि तीन दिन से खाने-पीने के लाले पड़े हैं। कोई प्रशासनिक अफसर देखने तक नहीं आया। पटवारी से लेकर गांव का सचिव भी नहीं आया। रिश्तेदारों द्वारा भोजन भेजा जा रहा है।
मेरे तीन घर थे तीनों बह गए
गांव की बुजुर्ग महिला रामा देवी ने बताया कि सरकार सभी को आवास दे रही है। मुझे आवास नहीं मिला। तीन घर थे, तीनों कच्चे थे। वो पानी में बह गए। मवेशी पानी में बह गए। गेहूं, सरसों भूसा सब कुछ बह गया।
अब कैसे परिवार का पालन पोषण होगा
गांव के 80 साल के बुजुर्ग विश्वनाथ शर्मा का कहना था कि जीवन में ऐसा मंजर कभी नहीं देखा। उन्होंने कहा कि पूरा गांव डूब चुका है। पांच दिन से किसी के घर चूल्हा नहीं जला। एक दिन भी कोई रोटी देने नहीं आया।
कोई सुनने वाला नहीं
गांव में रहने वाले संतोष का कहना है कि कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बाढ़ का पानी उतर गया है। अब तक कोई सुनवाई करने नहीं आया। सब कुछ उजड़ गया।
सब को सहायता पहुंचाई जा रही
जब गांव के लोगों की समस्या को लेकर SDM आरए प्रजापति से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि सभी के लिए भोजन की व्यवस्था की जा रही है। कुसमरिया खैरा गांव में पहुंच का साधन नहीं है। रास्ता नहीं होने के कारण यह स्थिति बनी है। उन लोगों से गांव छोड़ने के लिए कहा गया था। आश्रय गृह में आने पर भोजन आदि की व्यवस्था की जाएगी।