श्रीहरिकोटा। भारत अगले महीने के मध्य तक अपने अब तक के सर्वाधिक क्षमता वाले अत्याधुनिक रॉकेट 'जीयोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांट विहिकल' (जीएसएलवी) मार्क-3 का परीक्षण करेगा। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के निदेशक एमवाईएस प्रसाद ने पत्रकारों से कहा कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य रॉकेट के वातावरणीय लक्षण एवं स्थायित्व का परीक्षण करना है।

इस अवसर पर हमने अंतरिक्ष में मनुष्य को ले जाने वाले अपने परीक्षणाधीन अभियान के एक उपकरण का भी परीक्षण करने का निर्णय किया है। इस प्रयोगात्मक अभियान पर 155 करोड़ रुपयों की लागत आएगी। जीएसएलवी मार्क-3 परियोजना के निदेशक एस सोमनाथ ने कहा कि यह रॉकेट देश का नया उपग्रह वहन करने वाला रॉकेट होगा। यह काफी बड़ा है और चार टन तक के उपग्रह का वहन कर सकता है। सोमनाथ ने कहा कि क्रायोजेनिक इंजन अभी निर्माण की प्रक्रिया में है और इसके तैयार होने में दो वर्ष लग जाएंगे।

चूंकि अन्य रॉकेटों के इंजन तैयार हो चुके हैं इसलिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने यह अभियान शुरू करने का निर्णय किया। मनुष्य को अंतरिक्ष में ले जाने वाले अभियान पर प्रसाद ने कहा कि यह किसी जीवित प्राणी को लेकर नहीं जाएगा, बल्कि यह सिर्फ अध्ययन के उद्देश्य से किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि 630 टन वाला रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 126 किलोमीटर की दूरी तय कर लेगा तो मानव को ले जाने वाला कैप्सूल उससे अलग हो जाएगा और उसमें विस्फोट होने के 20 मिनट बाद यह बंगाल की खाड़ी में गिर जाएगा। मानव कैप्सूल की गति को उससे लगे तीन पैराशूट नियंत्रित करेंगे। यह मानव कैप्सूल पोर्ट ब्लेयर से 600 किलोमीटर और अंतरिक्ष केंद्र से 1,600 किलोमीटर की दूर समुद्र में गिरेगा जिसे भारतीय कोस्ट गार्ड या भारतीय नौसेना वापस ले आएगी।