चालू खरीफ सीजन में दालों की बुआई में कमी आई है। कृषि मंत्रालय की तरफ से जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 23 जुलाई तक देशभर में करीब 8.73 मिलियन हेक्टेयर हेक्टेयर रकबे में दालों की बुवाई की गई है। पिछले साल इसी अवधि तक दालों का बुआई रकबा 9.72 मिलियन हेक्टेयर के आसपास था। यानी यह बीते साल के मुकाबले 10 फीसदी कम है। वहीं, खरीफ सीजन 2021-22 में दालों का रकबा 13.18 मिलियन हेक्टेयर था जबकि उत्पादन 8.5 मिलियन टन था। रकबा कम होने से त्योहारी सीजन में दालों की कीमत में बढ़ोतरी हो सकती है, जो महंगाई का बोझ बढ़ाएगी।
कृषि क्षेत्र से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, पिछले साल की उत्पादकता को देखते हुए, उत्पादन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए बुवाई क्षेत्र का रकबा 1.5 मिलियन हेक्टेयर बढ़ाना होगा। हालांकि, यह लक्ष्य पाना अब मुश्किल है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि दलहल का रकबा बढ़ाने के लिए किसानों को और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। अगर इनका रकबा कम रहा तो इनकी खुदरा कीमतें और बढ़ सकती हैं। इसका असर न केवल आम लोगों के बजट पर पड़ेगा बल्कि सरकार का महंगाई का गणित भी बिगड़ जाएगा।
प्रमुख उत्पादक राज्यों में बुआई प्रभावित
राजस्थान, मुध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे प्रमुख दाल उत्पादक राज्यों में इस साल दाल की बुआई मानसून में देरी से प्रभावित हुई है। राजस्थान में 11 से 24 जुलाई के बीच मानसूनी बारिश 20 फीसदी कम हुई है। इसके चलते राजस्थान में अब तक करीब 9 लाख हेक्टेयर में दलहन की बुआई हुई है। वहीं, पिछले खरीफ सीजन में अब तक यह 14 लाख हेक्टेयर थी। इससे इस साल दालों का उत्पादन घटने की आशंका लगाई जा रही है। अगर उत्पाद घटा तो कीमत बढ़नी तय है। गौरतलब है कि थोक मूल्य सूचकांक में दालों का भारांक 0.64% और खुदरा मूल्य सूचकांक में 2.95% है। दालों की थोक महंगाई जून में 11.49% तक कम हो गई, जो पिछले महीने में 12.09% थी। इससे महंगाई में थोड़ी राहत मिली है।
इन राज्यों में कम हुई बारिश
हरियाण पंजाबा और उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रमुख राज्यों में सामान्य से कम बारिश हुई है। गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी कम बारिश दर्ज की गई है। इसका खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई पर असर पड़ा है, इन राज्यों ने धान, दाल, मोटे अनाज, कपास, तिलहन और जूट जैसी फसलों की कम बुवाई सूचना दी है। हालांकि, किसानों की उम्मीद है कि अगर अभी भी बारिश हुई तो बुआई में तेजी आ सकती है।
मांग बढ़ने से भड़केगी महंगाई
बाजार जानकारों का कहना है कि अगस्त के शुरू से त्योहारों के दौरान खाद्य तेल और दलहन की खपत बढ़ जाती है। इस लिहाज से भी ये फसलें अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। ऐसे में इनकी कीमत तेजी से बढ़ सकती है जो महंगाई को भड़काने का काम करेगी। आंकड़ों के अनुसार अप्रैल और मई के दौरान दलहन के दाम भी तेजी से बढ़े हैं। हालांकि कुछ उपाय किए जाने के बाद दाम कम हुए हैं लेकिन अब भी अरहर, उड़द और मसूर के भाव पिछले वर्ष के मुकाबले 6 से 15 प्रतिशत तक अधिक हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार से राहत की उम्मीद नहीं
कारोबारियों और बाजार पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि बढ़ती मांग और कम उत्पादन के कारण दलहन और खाद्य तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अधिक बने रहेंगे। ऐसे में वहां से राहत की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसके चलते दिसंबर तक दालों के दाम ऊंचे स्तर पर रह सकते हैं। दिसंबर के बाद देसी बाजार में खरीफ की फसलें उतर जाएंगी जब कहीं जाकर राहत मिल सकती है।