कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री का नाम तय हो गया है। राज्य के नए गृह मंत्री बरवराज बोम्मई अब सूबे के नए CM होंगे। शाम 7 बजे विधायक दल की बैठक में इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने बोम्मई के नाम का प्रस्ताव रखा। इसे सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। जानकारी के मुताबिक, बोम्मई बुधवार यानी कल दोपहर को 3 बजकर 20 मिनट पर पद की शपथ लेंगे।

28 जनवरी 1960 को जन्मे बसवराज सोमप्पा बोम्मई कर्नाटक के गृह, कानून, संसदीय मामलों के मंत्री हैं। उनके पिता एस आर बोम्मई भी राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट बसवराज ने जनता दल के साथ राजनीति की शुरुआत की थी। वे धारवाड़ से दो बार 1998 और 2004 में कर्नाटक विधान परिषद के लिए चुने गए। इसके बाद वे जनता दल छोड़कर 2008 में भाजपा में शामिल हो गए। इसी साल हावेरी जिले के शिगगांव से विधायक चुने गए।

बसवराज सिंचाई के मामलों के एक्सपर्ट
इंजीनियर और खेती से जुड़े होने के नाते बसवराज को कर्नाटक के सिंचाई मामलों का जानकार माना जाता है। राज्य में कई सिंचाई प्रोजेक्ट शुरू करने की वजह से उनकी तारीफ होती है। उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र में भारत की पहली 100% पाइप सिंचाई परियोजना लागू करने का श्रेय भी दिया जाता है।

येदियुरप्पा ने सुझाया बोम्मई का नाम

कर्नाटक के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई इन तीनों कोणों में फिट हैं। वे येदियुरप्पा के चहेते और उनके शिष्य हैं। सूत्रों की मानें, तो येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने से पहले ही बोम्मई का नाम भाजपा आलाकमान को सुझा दिया था। दरअसल, लिंगायत समुदाय के मठाधीशों के साथ हुई बैठक में येदियुरप्पा ने अपनी तरफ से इस नाम को उन सबके बीच रखा था।

कर्नाटक के मशहूर लिंगेश्वर मंदिर के मठाधीश शरन बसवलिंग ने बताया अगर येदियुरप्पा एक इशारा करते, तो पूरा समुदाय उनके लिए भाजपा के विरोध में उतर आता। चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ती, लेकिन खुद येदियुरप्पा ने बसवराज बोम्मई की हिमायत की। लिंगायत समुदाय के होने की वजह से उनके नाम पर सभी मठाधीश जल्दी राजी हो गए।

बोम्मई के नाम पर लिंगायत समुदाय राजी

सोमवार को येदियुरप्पा के इस्तीफे का साथ ही राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश की सियासत में हलचल थी कि आखिर बीएस येदियुरप्पा के बाद कर्नाटक का CM कौन होगा? येदि को हटाकर भाजपा ने जानबूझकर आखिर राज्य के सबसे प्रभावी समुदाय लिंगायत से विरोध मोल क्यों लिया? अगर वे रूठ गए तो भाजपा का कर्नाटक में क्या होगा? लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने लिंगायत समुदाय और येदियुरप्पा दोनों को साधने के लिए बसवराज बोम्मई का नाम तय किया।

बोम्मई की संघ से करीबी भी उनके पक्ष में

बसवराज बोम्मई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं। संघ के शीर्ष नेतृत्व के बेहद करीबी हैं। माना जाता है कि संघ और येदियुरप्पा के बीच की कड़ी के रूप में इन्होंने ही काम किया। येदियुरप्पा से संघ के बिगड़े रिश्तों का असर येदियुरप्पा के कामकाज पर न पड़े इसमें भी बड़ी भूमिका बोम्मई ने निभाई।

कर्नाटक में भाजपा तीन कोण साधने थे

भाजपा को कर्नाटक में तीन कोण साधने थे। पहला पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा, दूसरा लिंगायत समुदाय और तीसरा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। दरअसल, येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के हैं। संघ की पृष्ठभूमि के भी है, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा से निष्कासित होने के बाद उनके और संघ के शीर्ष नेतृत्व के संबंधों के बीच दरार आ गई थी। संघ कभी नहीं चाहता था कि येदियुरप्पा भाजपा में वापस आएं, लेकिन 2013 के चुनाव में बिना येदियुरप्पा के भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। लिहाजा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने येदियुरप्पा को वापस बुला लिया।

लिंगायत समुदाय का असर 100 विधानसभा सीटों पर

कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 90-100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को हटाना आसान नहीं होगा। उनको हटाने का मतलब इस समुदाय के वोटों को खोना होगा।

येदियुरप्पा को नाराज नहीं कर सकती थी भाजपा

भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीएस येदियुरप्पा को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। अलग होने के बाद येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पार्टी (केजपा) बनाई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि लिंगायत वोट कई विधानसभा सीटों में येदियुरप्पा और भाजपा के बीच बंट गया था।

विधानसभा चुनाव में भाजपा 110 सीटों से घटकर 40 सीटों पर सिमट गई थी। उसका वोट प्रतिशत भी 33.86 से घटकर 19.95% रह गया था। येदि की पार्टी को करीब 10% वोट मिले थे। 2014 में येदियुरप्पा की वापसी फिर भाजपा में हुई। यह येदियुरप्पा का ही कमाल था कि कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 17 लोकसभा सीटें जीतीं।