मेरा नाम आयांश है। मैं पांच महीने का हूं। चार माह से इस इंतजार में हूं कि फरिश्ते की तरह कोई मेरी जिंदगी बचा ले। मैं आम बच्चों की तरह खेलना चाहता हूं। किलकारियां भरना चाहता हूं। चहकना चाहता हूं, लेकिन ऐसा कर पाने में असमर्थ हूं। बचपन से मुझे दुर्लभ बीमारी ने घेर लिया है। इलाज तो है, पर काफी महंगा है। हैसियत से कहीं ज्यादा। डॉक्टरों ने कह दिया है- अगर इंजेक्शन नहीं मिला तो मैं बस कुछ महीने का मेहमान हूं। आप सबसे गुजारिश है, मेरी मदद कीजिए। तभी मेरी सांसें चलती रहेंगी।

यह ये दर्द है छत्तीसगढ़ में बिलासपुर के राजकिशोर नगर में रहने वाले उस अयांश का, जिसे स्पाइनल मस्कुलर एट्राफी नाम की बीमार ने घेर लिया है। पिता अंशुल और मां आशु दोनों ही बच्चे को जीवित रखने का संघर्ष कर रहे हैं। रोज आयांश की सांस तेज हो रही हैं। धड़कन की रफ्तार बढ़ रही है। खाने-पीने, पैर उठाने और शरीर की दूसरी गतिविधियां करने में समस्या हो रही है। उस बच्चे की जिजीविषा है कि वह अभी तक हमारे-आपके बीच इस दुनिया में मौजूद है।

दर्द होता, पर शरीर में इतनी ताकत नहीं कि मूवमेंट कर सके
पिता अंशुल बताते हैं कि आयांश को यह परेशानी पैदा होने के दूसरे महीने से शुरू हुई थी। वह सामान्य बच्चों की तरह हरकत करने में असहाय था। मालिश करने या टीका लगने के दौरान उसे दर्द का अहसास तो होता, पर शरीर में इतनी ताकत नहीं थी कि मूवमेंट कर पाए। संदेह हुआ तो आयांश को पहले तो शहर के अपोलो अस्पताल में, फिर बंगलौर के एक बड़े अस्पताल में भी चेकअप करवाया। दोनों अस्पतालों में जांच की रिपोर्ट में यह स्पष्ट हो गया कि उसे स्पाइनल मस्कुलर एट्राफी है। अब 16 करोड़ का इंजेक्शन लगना है।लोगों, समाज और सरकार... सब से मदद की दरकार
इसके बाद से अब तक मां-पिता परिजन, दोस्त और समाज के लोग बच्चे की जिंदगी के लिए हर तरह से प्रयास करने में लगे हैं। फिलहाल परिवार इस स्थिति में नहीं पहुंचा है कि वे बच्चे का इलाज करवा सके। उसे नई जिंदगी दे सके। सभी सरकार और समाज से मदद की गुहार लगा रहे हैं। पिता कहते हैं कि वे किसी भी कीमत पर बच्चे को नहीं खोना चाहते। इसलिए वे जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं कि उनका बच्चा भी दूसरे बच्चों तरह चल फिर सके। मुस्कुरा सके और नया जीवन मिले। यही उनकी जीत होगी।

स्विटजरलैंड की कम्पनी बनाती है जोलगेनजमा इंजेक्शन
स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 जैसी दुर्लभ बीमारी की चपेट में आकर आयांश की मांसपेशियां कमजोर हैं। स्तनपान कराते वक्त उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। वह पूरी तरह निष्क्रय हो चुका है। मेडिकल साइंस द्वारा अब तक की गई रिसर्च के बाद इस बीमारी का सिर्फ एक ही इलाज है जोलगेनजमा इंजेक्शन है जो स्विटजरलैंड की कम्पनी नोवार्टिस तैयार करती है। कंपनी इसे ₹16 करोड़ में बेचती है। बच्चे को जिंदा रहने के लिए इस इंजेक्शन का लगना जरूरी है। जिसके लिए सहायता करने की मांग उठाई जा रही है।

अब तक 1.54 लाख रुपए हुए एकत्र, मंजिल काफी दूर
बच्चे को नवजीवन देने की इस लड़ाई में लोग मदद करने सामने आ रहे हैं। इसमें 121 लोगों ने मिलकर एक लाख 54 हजार रुपए जुटाए हैं। इसके इसके लिए पिता अंशुल दुबे ने अपना अकाउंट नंबर दिया है, जिसे केट्‌टो के पोर्टल पर जाकर कोई भी देख सकता है। वहां से पिता का अकाउंट नंबर और बच्चे से जुड़े सारे दस्तावेज उपलब्ध हैं जो इस बात की पुष्टि करता है कि उसे जीने के लिए मदद की कितनी जरूरत है। मां-पिता अपील कर रहे हैं। अधिक से अधिक संख्या में लोग उनकी मदद करें।

इंजेक्शन इतना महंगा क्यों है?

Zolgensma इंजेक्शन को स्विटजरलैंड की कम्पनी नोवार्टिस तैयार करती है। कम्पनी का दावा है कि यह इंजेक्शन एक तरह का जीन थैरेपी ट्रीटमेंट है। जिसे एक बार लगाया जाता है। इसे स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी से जूझने वाले 2 साल से कम उम्र के बच्चों को लगाया जाता है।

यह इंजेक्शन इतना महंगा क्यों है इस पर नोवार्टिस के CEO नरसिम्हन का कहना है, जीन थैरेपी मेडिकल जगत में एक बड़ी खोज है। जो लोगों के अंदर उम्मीद जगाती है कि एक डोज से पीढ़ियों तक पहुंचने वाली जानलेवा जेनेटिक बीमारी ठीक की जा सकती है।

इंजेक्शन के तीसरे चरण के ट्रायल का रिव्यू करने के बाद इंस्टिट्यूट फॉर क्लीनिकल एंड इकोनॉमिक ने इसकी कीमत 9 से 15 करोड़ रुपए के बीच तय की थी। नोवार्टिस ने इसे मानते हुए इसकी कीमत 16 करोड़ रुपए रखी।