भोपाल  । कद्दावर नेताओं की भरमार वाली भाजपा में इस समय सब कुछ ठीक नहीं है। ऊपरी तौर पर भाजपाई एकजुट नजर आ रहे हैं, लेकिन अंदरखाने गुटबंदी चरम पर है। इसका परिणाम यह है कि जिलों की कार्यकारिणी गठित नहीं हो पा रही है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी के बड़े नेताओं की दखलंदाजी के कारण भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा जिलों की टीम गठित नहीं कर पा रहे हैं। गौरतलब है कि बड़े नेताओं की दखलंदाजी के कारण ही वीडी शर्मा तकरीबन एक साल बाद प्रदेश कार्यकारिणी गठित कर पाए थे।
15 जुलाई से जिला कार्यसमिति के बैठकें होनी हैं। इसके लिए प्रदेश कार्यसमिति  की बैठक में निर्देश दिए गए थे कि जल्द से जल्द जिलों में कार्यकारिणी का गठन किया जाए। लेकिन अधिकांश जिलों में अब तक भाजपा की नई टीम का ऐलान ही नहीं हो पाया है। जिलों के अध्यक्ष परानी टीम से काम चला रहे हैं। जिला कार्यसमिति की बैठकों से पहले नई टीम के गठन पर कसरत चल रही है। उम्मीद है कि कुछ बड़े जिलों में जल्द ही नई टीम सामने आ सकती है।
छह साल बाद टीम, वह भी आधी-अधूरी
भाजपा में नेताओं की खींचतान का ही परिणाम रहा है कि करीब छह साल बाद प्रदेश भाजपा की नई टीम गठित हो पाई है। वीडी शर्मा जब अध्यक्ष बने तो करीब एक साल बाद उन्होंने नई टीम गठित की, लेकिन वह अभी भी आधी-अधूरी है। इससे पहले के अध्यक्ष राकेश सिंह पुरानी टीम से ही काम चलाते रहे थे। शर्मा ने करीब एक साल पहले जिला अध्यक्षों की घोषणा की थी पर अधिकांश जिला अध्यक्ष अब तक अपनी नई टीम नहीं बना सके हैं। अब तक केवल बीस जिलों में ही नई टीम बन पाई है। अधिकांश जिलों में नए जिलाध्यक्ष पुरानी टीम से ही काम चला रहे हैं। कई जिले तो ऐसे हैं जिनमें पांच साल पहले बनी टीम अब भी काम कर रही है।
बड़े नेताओं को साधने में आ रही दिक्कत
प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा दिग्गजों वालों भाजपा में बेबस की स्थिति में है। एक तरफ उन पर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक नेताओं को जिला कार्यकारिणी में एडजस्ट करना है, वहीं हर बड़े नेता को भी साधना है। ऐसे में नई टीम का गठन न हो पाने के पीछे नेताओं के अहम का टकराव माना जा रहा है। अधिकांश जिलों में सांसद और विधायकों में नामों को लेकर एका नहीं बन पा रही है। सबसे ज्यादा टकराव जिला महामंत्री और मंडल अध्यक्ष पदों को लेकर है। इसमें सांसद अपना समर्थक तो विधायक अपने समर्थक को पद दिलाना चाहते हैं। सूत्रों की माने तो प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बाद राष्ट्रीय सहसंगठन महामंत्री शिवप्रकाश और प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने प्रदेश के नेताओं के साथ संभागीय संगठन मंत्रियों की बैठक ली थी। इसमें उनसे कहा गया है कि वे सांसद, विधायक समेत जिले के अन्य सीनियर नेताओं के साथ बैठकर नामों पर एकराय बना कर इसे प्रदेश संगठन को भेजे।
बड़े जिलों में सबसे अधिक परेशानी
भोपाल, इंदौर, ग्वालियर ऐसे जिले हैं जहां दिग्गज नेताओं की भरमार है। इन जिलों में कार्यकारिणी गठन में सबसे अधिक परेशानी आ रही है। राजधानी भोपाल में आज भी वही टीम कर रही है जो दस साल पहले बनी थी। जिलाध्यक्ष आलोक शर्मा के दो कार्यकाल रहे। इसके बाद एक साल इंतजार में गुजर गया। लंबी जद्दोजहर के बाद अध्यक्ष बने सुरेन्द्रनाथ सिंह पुरानी टीम से ही काम चलाते रहे। उसके बाद विकास वीरानी ने भी नई टीम नहीं बनाई। सुमित पचौरी को अध्यक्ष बने एक साल का समय हो रहा है पर वे भी अब तक अपनी टीम का ऐलान नहीं कर सके हैं। माना जा रहा है कि अब चार पांच दिनों में भोपाल की टीम सामने आ सकती है। इंदौर में भी पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय समर्थकों को जिला कार्यकारिणी में लेने को लेकर उलझन है। वहीं अब मंत्री तुलसी सिलावट में भी अपनी विधानसभा में समर्थकों के लिए पद चाह रहे हैं। यही हाल ग्वालियर में हैं। यहां केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के साथ सिंधिया समर्थकों को एडजस्ट करने पर पेंच फंसा हुआ है। इन दोनों जिलों में किस नेता को कौन सा पद दिया जाए इस मामले को सीधे प्रदेश नेतृत्व देख रहा है।