भोपाल ।  मध्यप्रदेश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत ‎निजी स्कूलों में प्रवेश लेने को लेकर बच्चों का धीरे-धीरे मोहभंग होता जा रहा है। यही वजह है ‎कि चालू साल में आरटीई के तहत मात्र एक लाख बच्चों ने ही आवेदन ‎किए है। आवेदन करने वाले बच्चों की संख्या में हर साल कमी आते जा रही है। 2019 में करीब ढाई लाख आवेदन हुए थे और करीब 2,03,447 बच्चों ने प्रवेश लिया था, जबकि प्रदेश के 26 हजार निजी स्कूलों में चार लाख सीटें हैं। हर साल आरटीई के तहत प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या कम हो रही है। शिक्षाविदों का कहना है कि आरटीई के तहत बड़े निजी स्कूल कम हैं। छोटे-छोटे स्कूलों में सीटें अधिक लॉक की गई हैं, जिससे अभिभावकों का रुझान छोटे निजी स्कूलों में कम रहता है। इस कारण आवेदन की संख्या कम होती जा रही है। बता दें कि पिछले वर्ष प्रदेश में कोरोना के संक्रमण के कारण आरटीई की सीटों पर प्रवेश प्रक्रिया नहीं हुई थी। इससे इस वर्ष अभिभावकों को दो कक्षा में बच्चों को प्रवेश की सुविधा दी गई है। प्रदेश में आरटीई के तहत आवेदन की आखिरी तारीख 30 जून है। आरटीई के तहत प्रवेश प्रक्रिया वर्ष 2011-12 में प्रारंभ की गई थी। अब तक करीब 20 लाख बच्चों ने निजी स्कूलों में प्रवेश लिया है। अब तक आरटीई के तहत करीब 80 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इस बारे में राजधानी के शिक्षाविदों का कहना है कि आरटीई के तहत सिर्फ ट्यूशन फीस माफ होती है। स्कूल के अन्य शुल्कों के अलावा पुस्तकें व कॉपियां, गणवेश आदि का खर्च अभिभावक को ही वहन करना होता है। ऐसे में अधिकांश अभिभावक यह शुल्क वहन नहीं करने की स्थिति में होते हैं और यही वजह है कि वे आवेदन तो कर देते हैं लेकिन अपने बच्चे को दाखिला नहीं दिलाते। वहीं एक अन्य एक्सपटर्स का कहना है कि हर साल आरटीई के तहत प्रवेश इसलिए घट रहे हैं क्योंकि बड़े निजी स्कूलों की तरफ अभिभावकों का रुझान अधिक है, जबकि छोटे निजी स्कूलों की तरफ नहीं है। साथ ही ऑनलाइन प्रक्रिया के कारण भी कई अभिभावक आवेदन नहीं कर रहे हैं।