पुलिस की कोशिशों के बाद भी भोपाल में किसान नेता शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्काजी और मेधा पाटकर ने शनिवार को केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली में कृषि कानून के 26 जनवरी की हिंसा के बाद आंदोलन में फूट पढ़ने के 7 महीने बाद मध्यप्रदेश के किसान एक फिर सक्रिय हो गए।
मेधा पाटकर गांधी भवन में धरने पर बैठीं, तो कक्काजी ने राजभवन पहुंचकर अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा। उन्होंने मोदी के कृषि कानून को काला कानून बताते हुए कहा कि गृहमंत्री अमित शाह अपनी गलती मान चुके हैं, लेकिन 12 बैठकों के बाद भी सरकार कदम पीछे लेने को तैयार नहीं है।
ऐसे में अब हम दोबारा दिल्ली कूच करेंगे। इसे लेकर रविवार को अहम बैठक होगी। उसके बाद आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। कक्काजी ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में यह बात कही। सरकार ने किसानों के प्रदर्शन को विफल करने के लिए किसान नेताओं को रात को ही उठा लिया था।
प्रदर्शन को देखते हुए राजभवन के यहां बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया।
गृहमंत्री गलती मानने को तैयार, कानून वापस लेने को नहीं
कक्काजी ने कहा कि कृषि कानून को लेकर 12 दौर की बैठकें हो चुकी हैं। इनमें चार मंत्रियों से बातचीत हुई, लेकिन एक दौर में ही अमित शाह शामिल हुए। उन्होंने कहा कि हमसे गलती हुई है। हम संशेधन के लिए तैयार हैं। हमने कहा- अगर आप यह पहले बोलते, तो यह दिक्कतें नहीं होती। हमने कहा कि कृषि कानूनों को रद्द किया जाए और MSP गारंटी कानून लागू किया जाए।
पहले संघ से जुड़े थे कक्काजी
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में सड़क पर उतरे किसानों का नेतृत्व यूं तो खुद किसान ही कर रहे हैं, लेकिन मध्य प्रदेश से किसान नेता कक्काजी प्रमुख चेहरा है। कुछ वर्षों पहले तक कक्काजी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ से जुड़े थे, लेकिन मध्य प्रदेश की तत्कालीन शिवराज सरकार के खिलाफ चलकर उन्होंने रास्ता बदला। कुछ समय बाद उन्होंने नए संगठन राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ का गठन किया। वे कई मौकों पर शिवराज सिंह चौहान का सार्वजनिक रूप से विरोध भी कर चुके हैं। कमलनाथ सरकार के खिलाफ भी उन्होंने किसान आंदोलन किया था, लेकिन बाद में वापस ले लिया था।
26 जनवरी की हिंसा के बाद फूट पढ़ गई थी
देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी को लालकिले पर हिंसा के बाद किसान संगठनों में फूट पढ़ गई थी। इसके बाद कई संगठन वापस लौट गए थे, हालांकि उन्होंने आंदोलन को चालू रखने का निर्णय लिया था। इसके बाद मध्यप्रदेश के किसान नेता कक्काजी भी वापस लौट आए थे। इसके बाद कक्कजी पर आरएसएस के लिए काम करते हुए आंदोलन को कमजोर करने के भी आरोप लगे थे