लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शनिवार को 82 सलाहकार और अध्यक्षों को बर्ख़ास्त कर दिया. इन सभी को राज्य मंत्री का दर्ज प्राप्त था. इन पदों पर अगले माह दोबारा नियुक्ति की बात चल रही है.

संवैधानिक पदों पर तैनात तीन अध्यक्षों को बख़्श दिया गया है. ये तीन विशेष अध्यक्ष हैं: हिंदी भाषा संस्थान के अध्यक्ष गोपालदास नीरज, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के अध्यक्ष यू पी सिंह और उत्तर प्रदेश योजना आयोग के उपाध्यक्ष एनसी बाजपेई. इन तीनों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा कि ये मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र का मामला है इसलिए ऐसा क्यों किया गया कह पाना संभव नहीं है. "हो सकता है कि वे कुछ फेरबदल की सोच रहे हों."

बर्ख़ास्त किए गए सभी 82 दर्जा प्राप्त मंत्री संवैधानिक पदों पर नहीं थे इसलिए इस बारे में सरकार ने कोई आधिकारिक विज्ञप्ति जारी नहीं की है.
'छवि सुधारने की कोशिश'

इससे पहले सत्ता के गलियारों में सुगबुगाहट थी कि सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद मुख्यमंत्री पार्टी और सरकार की छवि को सुधारने के लिए कोई बड़ा फ़ैसला ले सकते हैं.

इससे पहले लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद अखिलेश यादव ने 36 दर्जा प्राप्त राज्यमंत्रियों की लालबत्ती छीनने का आदेश जारी कर दिया था.

हालांकि, बाद में से कई मंत्रियों को उनकी लालबत्ती वापस दे दी गई थी. इसके एक महीने बाद पार्टी की 85 ज़िला और महानगर इकाइयों और 14 प्रकोष्ठों को भंग कर दिया गया था.

सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान सपा के राष्ट्रीय महासचिव नरेश अग्रवाल ने भी कहा था कि सीएम ने असली लालबत्ती के साथ बहुत सारी नक़ली लाल बत्ती दे दी है.

उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया था कि सुप्रीम कोर्ट ने जब लालबत्ती लगाने पर रोक लगाई है तो उस पर रोक लगाई जाए.

यह भी कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव ने यह फ़ैसला बुधवार को बाघपत में एक अध्यक्ष के पिता द्वारा कुछ पुलिस कर्मियों से कथित दुर्व्यवहार के बाद लिया है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने 100 से अधिक लोगों को अपने राजनीतिक हित के लिए इस तरह के पद बांटे थे. शनिवार को इतनी बड़ी संख्या में हटाए जाने के बाद भी कई ऐसे दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री हैं जिनपर अखिलेश यादव ने अपनी कृपा बनाए रखी है.