लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में फूट के बाद चिराग पासवान बुधवार को पहली बार मीडिया के सामने आए। उन्होंने चाचा पशुपति कुमार पारस पर पलटवार करते हुए कहा कि पार्टी ने समझौते की बजाय संघर्ष का रास्‍ता चुना था। पिता के निधन के बाद मैंने परिवार और पार्टी दोनों को लेकर चलने का काम किया। इसमें संघर्ष था। जिन लोगों को संघर्ष का रास्‍ता पसंद नहीं था, उन्‍होंने ही धोखा दिया। चाचा बोलते, तो पहले ही संसदीय दल का नेता बना देता।

चिराग ने कहा- LJP को पहले भी तोड़ने की कोशिश की गई थी। मैं रामविलास पासवान का बेटा हूं। शेर का बेटा हूं। पार्टी पापा की सोच के साथ मजबूती के साथ आगे बढ़ेगी। मुझे यह अधिकार पार्टी का संविधान ही देता है। कोई भी संगठन इसके अनुरूप ही चलता है। पारस गुट ने पटना में गुरुवार को कार्यकारिणी की जो बैठक बुलाई है, वो असंवैधानिक है। उनके लिए गए फैसले भी गलत हैं।

चिराग के प्रेस कॉन्फ्रेंस की अहम बातें

1. यह लड़ाई लंबी है

8 अक्टूबर को पिता जी का निधन हुआ। इसके तुरंत बाद पार्टी विधानसभा चुनाव में उतरी। इस दौरान ढंग से घर पर बैठने या पापा को याद करने का भी समय नहीं मिला। कुछ समय से मेरी तबीयत ठीक नहीं चल रही है। यह लड़ाई लंबी है। हम समय-समय पर सवालों का जवाब देंगे। मैं मीडिया के सामने आऊंगा।

2. सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया

चुनाव में भी लोजपा को बड़ी जीत मिली। सभी ने कहा था कि हमें नकार दिया जाएगा, लेकिन हमें 6% वोट मिला। राज्य के 25 लाख लोगों ने हमारी पार्टी वोट को दिया। लोजपा ने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। हमने गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा।

3. पापा एडमिट थे, तब भी पार्टी तोड़ने की कोशिश हुई

जब पापा एडमिट थे, तभी पार्टी को तोड़ने की कवायद जदयू कर रही थी। पापा ने भी चाचा को कहा था। पार्टी में कुछ लोग संघर्ष के रास्ते पर चलने के लिए तैयार नहीं थे। अगर जदयू, भाजपा और लोजपा मिलकर लड़ते तो परिणाम और अच्छा होता। मगर, नीतीश के सामने नतमस्तक होना पड़ता, जो हमें मंजूर नहीं है।

4. मेरी पीठ के पीछे षड्यंत्र रचा गया

मुझे बिहार और बिहारियों से प्यार है। इस कारण मैंने कोई समझौता नहीं किया। चुनाव के दरम्यान भी सांसदों ने कोई भूमिका पार्टी के लिए नहीं निभाई। पार्टी उनसे पूछताछ और कार्रवाई कर सकती थी। ये उन्हें आभास था। कोरोना की वजह से सब कुछ रुक गया। तब तक मुझे टायफाइड भी हो गया। जब मैं बीमार पड़ा, तो मेरी पीठ पीछे षड्यंत्र रचा गया, जबकि चुनाव के बाद से ही चाचा से संपर्क करने की कोशिश की। मगर संपर्क नहीं हुआ। जब कोई संवाद नहीं हुआ तो होली के दिन परिवार के लोग भी नहीं थे। उस दिन मैंने उन्हें पत्र भी लिखा था। मैंने उसके जरिए तो उनसे बात करने की कोशिश की।

5. पार्टी और परिवार को बचाने की कोशिश की

मैंने अंत तक पार्टी और परिवार को बचाने की कोशिश की। मैं उनके घर भी गया। कल दोपहर तक मेरी मां ने उनसे बात करने की कोशिश की। पर कल अहसास हो गया कि सारे प्रयास असफल हैं। इसलिए वर्चुअल तरीके से राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग की। जो लोग मुझे अध्यक्ष और संसदीय दल के नेता पद से हटाने की बात कह रहे हैं, उन्हें पार्टी के संविधान के बारे में जानना चाहिए।

6. आने वाले दिनों में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ेंगे

जिस तरह से उन्हें चुना गया, वो पार्टी के संविधान के मुताबिक बिल्कुल गलत है। इसका फैसला पार्टी की संसदीय कमेटी या राष्ट्रीय अध्यक्ष को करना होता है। अध्यक्ष पद सिर्फ दो परिस्थितियों में खाली हो सकता है, पहला- मृत्यु होने पर या खुद से रिजाइन करने पर। आने वाले दिनों में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। यह पक्का है। लीगल ओपिनियन ली जा रही है। मेरे पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है।


पारस के आवास के बाहर जमकर प्रदर्शन

उधर, चिराग समर्थकों ने बुधवार को पशुपति कुमार पारस के सरकारी आवास के बाहर जमकर प्रदर्शन किया। दूसरी ओर चिराग के सरकारी आवास के बाहर पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी गई है।


रविवार-सोमवार की रात LJP में हुआ था तख्तापलट

बीते रविवार की शाम से ही पार्टी में कलह शुरू हो गई थी। सोमवार को चिराग पासवान को छोड़ बाकी पांचों सांसदों ने संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई और हाजीपुर सांसद पशुपति कुमार पारस को संसदीय बोर्ड का नया अध्यक्ष चुन लिया। इसकी सूचना लोकसभा स्पीकर को भी दे दी गई। सोमवार शाम तक लोकसभा सचिवालय से उन्हें मान्यता भी मिल गई।