भोपाल: मध्य प्रदेश में हरियाली और जल संरक्षण का दायरा बढ़ाने के लिए एक खास सॉफ्टवेयर की मदद ले रही है. इस नए मॉडल की मदद से प्रदेश में हरियाली बढ़ाने किए जा रहे पौधारोपण और जल संरक्षण के कामों की सफलता की गारंटी गई गुना बढ़ गई है. मध्य प्रदेश में इस खास सॉफ्टवेयर की सफलता को देख अब देश के दूसरे राज्य भी इसके मुरीद हो गए हैं. देश के बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्य मध्य प्रदेश आकर नए सिस्टम को समझ चुके हैं. वहीं राजस्थान सहित कई दूसरे राज्यों का दल भी मध्य प्रदेश आने जा रहा है. उधर मध्य प्रदेश सरकार ने प्रदेश में होने वाले तमाम पौधारोपण और दूसरे कामों में इसको शत प्रतिशत लागू कर दिया है.

सॉफ्टवेयर करेगा ओके तभी होंगे 1 हजार करोड़ के काम

मध्य प्रदेश सरकार अब प्रदेश में हो रहे पौधारोपण और जल संरक्षण के कामों में खासतौर से तैयार कराए गए सिपरी यानी सॉफ्टवेयर फॉर आइडेंटिफिकेशन एंड प्लानिंग ऑफ रूरल इंफ्रस्ट्रक्चर सॉफ्टवेयर की मदद ले रहा है. इस सॉफ्टवेयर की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार द्वारा शुरू किए जा रहे 1 हजार करोड़ के कामों को तभी किया जाएगा, जब इस सॉफ्टवेयर की ओके रिपोर्ट मिल जाएगी.

दरअसल, मोहन सरकार 15 अगस्त से मध्य प्रदेश में एक नए अभियान की शुरूआत करने जा रही है. इस अभियान का नाम एक बगिया मां के नाम रखा गया है. इस अभियान में मनरेगा की मदद से प्रदेश की 30 हजार से ज्यादा स्व सहायता समूह की महिलाओं की निजी भूमि पर 30 लाख से ज्यादा फलदार पौधे लगाए जाएंगे. इस योजना पर सरकार 1 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी, लेकिन सरकार ने इस योजना में प्रावधान किया है कि पौधारोपण उसी स्थान पर किया जाएगा, जहां सिपरी सॉफ्टवेयर की मदद से भूमि के परीक्षण के बाद ओके रिपोर्ट मिलेगी. यदि रिपोर्ट निगेटिव आई तो उस स्थान पर पौधा रोपण नहीं होगा.

आखिर क्यों दूसरे राज्य हुए मुरीद

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा तैयार किए गए इस आधुनिक सॉफ्टवेयर के बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्य मुरीद हो गए हैं. आखिर ऐसा क्यों है, इसकी वजह इस सॉफ्टवेयर की खासियत है. इस सिपरी सॉफ्टवेयर को महात्मा गांधी मनरेगा, मध्य प्रदेश राज्य रोजगार गारंटी परिषद, भोपाल ने मध्य प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रोनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड और इसरो की मदद से तैयार कराया है.

मनरेगा आयुक्त संचालक वाटरशेड मिशन अवि प्रसाद बताते हैं कि "यह सॉफ्टवेयर जल संरक्षण के लिए उपयुक्त स्थानों की बेहद सटीकता से पहचान करता है. इसकी मदद से गुणवत्तापूर्ण संरचनाएं तैयार करने में बेहद मदद मिली है. प्रदेश में इस सिपरी सॉफ्टवेयर की मदद से ही प्रदेश में 79 हजार 815 खेत, तालाब, 1254 अमृत सरोवर सहित 1 लाख से ज्यादा कूप रिचार्ज पिट चिन्हित करने में मदद मिली.

सॉफ्टवेयर तय करता है कहां काम करना बेहतर

सामाजिक कार्यकर्ता भास्कर सिंह बघेल कहते हैं कि "सिपरी टेक्नोलॉजी एक अच्छी पहल है. ग्रामीण विकास में रिसोर्स मैपिंग के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है. मनरेगा में पहले से जियो टैगिंग के जरिए फील्ड के कामों की मैपिंग की जाती थी, लेकिन इस तकनीक से और ज्यादा सटीकता आएगी. इस तकनीक का उपयोग सिर्फ सड़क निर्माण, पानी प्रबंधन ही नहीं, बल्कि पौधा रोपण जैसे कामों में उपयोग किया जा सकेगा.

 

एक क्लिक पर मिलती है पूरी डिटेल

इस सॉफ्टवेयर को सैटेलाइट मैप को सभी गांवों, खसरों से जोड़ा गया है. इसको देखकर पता चल जाता है कि कौन सी जमीन एग्रीकल्चर है या फॉरेस्ट लैंड है. मिट्टी सिलेक्ट करते ही यह बता देता है कि क्या यह पौधारोपण, खेत तालाब योजना जैसी किस योजना के लिए उपयुक्त है. इसमें ज्योग्राफी, लीनियामेंट जैसे तमाम जरूरी तथ्यों के बारे में बताया जाता है.

इस सॉफ्टवेयर से पंचायत, मनरेगा विभाग को जोड़ा गया है. विभाग के किसी भी काम को शुरू करने के पहले इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से यह पता चल जाता है कि उक्त स्थान किस तरह के काम के लिए उपयोगी है.