
भोपाल: राजधानी में बना ऐशबाग रेलवे ओवर ब्रिज अपनी डिजाइन को लेकर देशभर में ट्रोल हो रहा है. सोशल मीडिया पर लोग इसे इंजीनियरिंग का नमूना बता रहे हैं, तो कोई इसे बनाने वाले इंजीनियर का मजाक बना रहा है. वहीं इस ब्रिज की 90 डिग्री वाली डिजाइन की वजह से ट्रैफिक शुरु होने पर दुर्घटना की संभावना भी जताई जा रही है, लेकिन आपको बता दें कि भोपाल में इंजीनियरिंग का अकेला नमूना ऐशबाग आरओबी ही नहीं है, बल्कि भोपाल शहर में इसके अलावा भी मेट्रो स्टेशन, फ्लाईओवर और अंडरपास ऐसे बनाए गए हैं, जिनका बाद में सुधार करना पड़ा. हालांकि कुछ में सुधार की गुंजाइश भी नहीं है.
ऐशबाग आरओबी
बता दें कि भोपाल के पुराने शहर में स्थित ऐशबाग आरओबी को 18 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है. यहां रेलवे ने अपना काम सही किया, लेकिन लोक निर्माण विभाग के हिस्से वाली एप्रोच रोड घुमावदार बनाने की बजाय एल शेप में बना दी. जिससे यह 90 डिग्री का ब्रिज बन गया. अब एनएचएआई ने इस ब्रिज की जांच करने के बाद इसमें ट्रैफिक शुरू करना घातक बताया है. साथ ही इसका सुधार करने के बाद ही ट्रैफिक शुरू करने की सलाह दी है. हालांकि इस ब्रिज का सोशल मीडिया पर मजाक बनने के बाद लोक निर्माण विभाग ने 7 अधिकारियों को निलंबित करते हुए एक सेवानिवृत्त अधिकारी पर जांच बिठाई है.
एमपी नगर, मेट्रो स्टेशन
एमपी नगर स्थित जोन टू में बना मेट्रो स्टेशन भी इंजीनियरिंग का बड़ा नमूना है. दरअसल, मेट्रो का काम अनुभवी एजेंसियों को दिया जाता है. यह काम भी बहुत महंगे होते हैं. ऐसे में यहां गलती की गुंजाइश नहीं होती है, लेकिन यहां सिविल इंजीनियरों की गलती की वजह से मेट्रो स्टेशन और सड़क के बीच केवल साढ़े 4 मीटर का गैप बचा था. इसके कारण पिछले साल जुलाई में सड़क को दो फीट खोदकर मेट्रो स्टेशन की उंचाई एडजस्ट की गई थी.
इंडियन रोड कांग्रेस ने इसमें भी आपत्ति ली, जिसके बाद अब एक बार फिर सड़क को खोदा जा रहा है. बता दें कि यह स्टेशन करीब 45 करोड़ रुपये की लागत से बना है. अधिकारियों का कहना है कि मेट्रो का ट्रैक पहले बनाया गया, इसके बाद स्टेशन बनाने का टेंडर हुआ. इसलिए इसमें गलतियां हुई.
जीजी फ्लाईओवर
हबीबगंज स्थित गणेश मंदिर से एमपी नगर के गायत्री मंदिर तक बनाया गया. जीजी फ्लाईओवर की डिजाइन भी ठीक नहीं है. करीब 154 करोड़ रुपये से बने प्रदेश के सबसे लंबे इस फ्लाइओवर के लोकार्पण के बाद ही सीमेंट-गिट्टी उखड़ चुकी है. जिसके बाद पीडब्ल्यूडी के उपयंत्री रवि शुक्ला को निलंबित कर दिया गया था. हालांकि बाद में उन्हें क्लीनचिट दे दी गई, लेकिन ऐशबाग ब्रिज के मामले में अब एक बार फिर निलंबित किया गया है. इस ब्रिज की गलत डिजाइन के कारण मुसीबतें कम नहीं है.
दरअसल यह ब्रिज गणेश मंदिर से जहां शुरू होता है, वहां डिवाइडर में कट पांइट नहीं है. जिससे वाहन चालक उलटी दिशा में लौटते हैं. यहां मोड़ की पर्याप्त जगह भी नहीं है. इसी तरह एमपी नगर थाने के सामने जहां ब्रिज की शुरुआत होती है, वहीं सामने ट्रैफिक सिग्नल लगे हुए हैं. जिससे ब्रिज से उतरते ही जेल रोड तरफ जाने वाले वाहन ट्रैफिक जाम में फंस जाते हैं. गर्वनमेंट प्रेस के सामने सड़क की डिजाइन गलत होने से यहां जलभराव हो रहा है, लेकिन इसका डिजाइन बनाने वाले इंजीनियरों ने यहां के ट्रैफिक फ्लो को बिना समझे डीपीआर बना दी.
सावरकर सेतु आरओबी
नर्मदापुरम रोड पर आरआरएल तिराहे के पास बने सावरकर सेतु में 4 लेग हैं. नर्मदापुरम से एमपी नगर जाने वाले रास्ते में दो टू लेन ट्रैफिक चलता है, लेकिन एम्स अस्पताल और 10 नंबर को जाने वाले रास्ते में वन वे ट्रैफिक है. यानि वाहन इन रास्ते उतर तो सकते हैं, लेकिन चढ़ने का रास्ता नहीं है. ऐसे में वाहनों को लंबा चक्कर लगाना पड़ता है. साथ ही ब्रिज की इस डिजाइन के कारण दुर्घटना का डर भी बना रहता है.
हबीबगंज नाका अंडर पास
भोपाल में हबीबगंज नाके के पास बनाए गए अंडरपास की उंचाई भी कम थी. लेकिन बाद में यहां सड़क को खोदकर उंचाई एडजस्ट की गई है. यही हाल भोपाल के कैंची छोला में बने अंडरपास का है. दरअसल, कैंची छोला चारों ओर से रेलवे की पटरियों से घिरा हुआ है. यहां पहुंचने के लिए अंडरपास ही सहारा है, लेकिन बीते कुछ सालों में यहां दो अंडरपास बनाए गए, लेकिन दोनों के नीचे से फायर ब्रिगेड और बड़े वाहन नहीं निकल पाते. इसी तरह निशातपुरा में बनाए गए अंडरपास में बरसात में पानी भर जाता है, जिसके कारण यहां नया आरओबी बनाना पड़ा.
राज्य सरकार ही नहीं केंद्र के प्रोजेक्ट भी मजाकिया
टाउन प्लानर और स्ट्रक्चर इंजीनियर सुयश कुलश्रेष्ठ का कहना है कि "भोपाल में ऐसे सैकड़ों करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं. जिनमें गलत इंजीनियरिंग का नमूना पेश किया गया. फिर चाहे जीजी फ्लाईओवर और सावरकर सेतु में गलत ट्रैफिक की बात करें या फिर 90 डिग्री वाले ऐशबाग आरओबी की. कुलश्रेष्ठ का कहना है कि यदि जिम्मेदारी निर्माण एजेंसी के इंजीनियर मौके पर जाकर डीपीआर बनाते और इस पर उच्च अधिकारी स्टडी करते तो इनमें गलतियों की गुंजाइश कम रहती.
कुलश्रेष्ठ ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार के प्रोजेक्ट तो छोड़िए, केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट भी गलत इंजीनियरिंग का नमूना साबित हो रहे हैं. एमपी नगर में मेट्रो स्टेशन की उंचाई कम होने से अब चौथी बार सड़क खोदी जा रही है."
इंजीनयरों की नाकामी को छिपा रहे अधिकारी
लोक निर्माण विभाग के ईएनसी केपीएस राणा ने बताया कि "ऐशबाग आरओबी के गलत डिजाइन के मामले में 7 अधिकारियों को सस्पेंड किया गया है. जबकि एक सेवानिवृत्त अधिकारी के खिलाफ विभगीय जांच चल रही है. हम बाकी ओवर ब्रिज का निरीक्षण भी कर रहे हैं, जिससे अब तक जो ब्रिज गलत डिजाइन से बने हैं, उसमें लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों की जांच की जा सके.
साथ ही हम कोशिश कर रहे हैं कि अब जो भी नए ब्रिज बनेंगे. उनके डीपीआर की पहले अच्छे से स्टडी की जाएगी. इसके बाद ही स्वीकृत दी जाएगी. वहीं मेट्रो स्टेशन के गलत डिजाइन को लेकर प्रबंध संचालक एस कृष्णा चैतन्य का कहना है कि "पहले जो उंचाई कम थी, उसे पूरी कर दिया गया है. अब यहां इंडियन रोड कांग्रेस के अनुसार सड़क से मेट्रो स्टेशन की उंचाई 5.5 मीटर है. अब बचा हुआ सड़क निर्माण का काम पूरा किया जा रहा है."