बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तमाम पार्टियां जाति से लेकर गठबंधन पॉलिटिक्स तक, गंठजोड़ में लग गई हैं. सीट शेयरिंग पर बातें चल रही हैं. इसी बीच यह बात चली कि 2020 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतनी वाली ओवैसी की पार्टी महागठबंधन के साथ जा सकती है. एआईएमआईएम की ओर से बयान भी आए कि वो बीजेपी और उसके गठबंधन को फिर से सत्ता में आने से रोकने के लिए महागठबंधन के साथ जाने को तैयार है.
AIMIM प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमाम ने आगे बढ़कर इस बात की पहल की. इसके बाद आरजेडी की तरफ से तेजस्वी यादव का बयान आया कि उनकी इस विषय पर किसी से बात नहीं हुई है. लेकिन इन सब के बीच रविवार को ओवैसी ने खुद मीडिया से बताया कि हमारी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने गठबंधन का प्रस्ताव भेजा है, लेकिन अभी जवाब नहीं मिला है.
2020 में भी हुई थी गठबंधन की कोशिश
ओवैसी ने कहा कि हमने 2020 में भी कोशिश की थी लेकिन प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया. और फिर हमने 5 सीटों पर जीत दर्ज की. ओवैसी के एक दिन बाद सोमवार को AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान का भी बयान आ गया. उन्होंने आरजेडी पर आरोप लगाते हुए कहा हमारे 4 विधायक तोड़ लिए फिर भी हमने सदन में कई बार इनका समर्थन किया.
उन्होंने कहा कि हम एनडीए को सत्ता में आने से रोकना चाहते हैं इसलिए खुद आगे बढ़कर गठबंधन का प्रस्ताव दिया. लेकिन हमें कमजोर ना समझा जाए. इसके बाद अख्तरुल ने कहा कि हम थर्ड फ्रंट के साथ भी जा सकते हैं. इसके लिए विकल्पों की तलाश हो रही है, संपर्क में हैं.
कयासों के बाजार गर्म
अख्तरुल ईमान के थर्ड फ्रंट वाले बयान के बाद कयासों के बाजार गर्म हो गए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि वो एक बार फिर 2020 की तरह ही कुछ छोटे दलों को साथ लेकर नया अलायंस बना सकते हैं. 2020 के चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने उपेंद्र कुशवाहा की तब की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP), मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP), देवेंद्र प्रसाद यादव की समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक), ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के साथ मिलकर ग्रैंड डेमक्रैटिक सेकुलर फ्रंट बनाया था.
छोटे दलों से चल रही बात
सोचिए इतनी पार्टियों को ओवैसी ने बिहार में इकट्ठा कर दिया था. इन सब का श्रेय वो अख्तरुल ईमान को ही देते हैं. अब एक बार फिर अख्तरुल के इशारे से यही लग रहा है कि वो प्रदेश के छोटे दलों से बात कर रहे हैं. अब सवाल यह है कि अगर एआईएमआईएम थर्ड फ्रंट बनाती है तो सबसे ज्यादा नुकसान किसको होगा? जवाब साफ है आरजेडी और कांग्रेस को.
आरजेडी का बेस वोट ही एम-वाई समीकरण
बिहार में आरजेडी के पॉलिटिक्स का बेस वोट ही एम-वाई समीकरण के तहत है. ऐसे में मुस्लिम बाहुल सीटों पर ओवैसी सीधे आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को पहुंचाएंगे. लेकिन बीएसपी के साथ आने से आरजेडी मुस्लिम बाहुल सीटों पर ही नहीं, उन सीटों पर भी खतरे में आएंगे, जहां दलित और मुस्लिम वोट मिलकर निर्णायक हैं. 2020 के चुनाव में बसपा ने एकमात्र सीट चैनपुर जीती थी. मोहम्मद जमा खान यहां से जीते थे.
6 सीटें आरजेडी के हाथ से निकलीं
एआईएमआईएम के 5 और जोड़ लें तो ये 6 सीटें आरजेडी के हाथ से सीधे निकल गईं. ये बात अलग है कि चुनाव बाद अख्तरुल ईमान छोड़ बाकी विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ दी. लेकिन इससे मजेदार रिजल्ट आया था बिहार के रामगढ़ सीट पर. अभी के आरजेडी सांसद सुधाकर सिंह इसी सीट पर विधानसभा का चुनाव लड़े थे. बसपा उम्मीदवार अंबिका सिंह से मात्र 189 मतों से उनकी जीत हुई थी. मतलब हारते-हारते बचे थे वो. इस बार उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के साथ हैं. राजभर भी एनडीए में हैं.
कांग्रेस के मुस्लिम वोट को भी झटका
जाहिर है बीएसपी और एआईएमाईएम ही हैं, जो अभी अलग-अलग बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. ऐसे में यदि इनका गठजोड़ एक बार फिर होता है तो कांग्रेस की नई दलित पॉलिटिक्स के साथ ही आरजेडी कांग्रेस के मुस्लिम वोट को भी झटका लगेगा. बीएसपी की ओर से मायावती के भतीजे आकाश आनंद को भी बिहार चुनाव प्रचार में उतारा जा रहा है.
हिंदू प्रत्याशियों पर भी दांव लगाने की तैयारी
दूसरी ओर ओवैसी इस बार मुस्लिम पॉलिटिक्स से आगे हिंदू प्रत्याशियों पर भी दांव चलने की तैयारी में हैं. ढाका सीट से एक प्रत्याशी राणा रंजीत सिंह के नाम का वो ऐलान भी कर चुके हैं. ऐसे में यदि AIMIM और आरजेडी एक साथ नहीं आए तो दर्जन भर सीटों पर तेजस्वी यादव को झटका मिल सकता है. हालांकि जानकारों का यह भी मानना है कि जिस तरह पिछले चुनाव में कुछ सीटों की वजह से आरजेडी सरकार बनने से रह गई थी. ऐसे में इस बार बिहार के मुसलमान फिर से ऐसा रिस्क लेने को तैयार नहीं होंगे.
तेजस्वी यादव वक्फ के मुद्दे पर पूरी मुखरता से मुस्लिम समाज के लिए आवाज उठा रहे हैं. और यह भी स्पष्ट संदेश है कि एनडीए को हराने के लिए विपक्ष का सबसे मजबूत चेहरा तेजस्वी ही हैं. ऐसे में वोट खराब करने बात भी मुस्लिम वोटर्स के दिमाग में जा सकती है, इसका बहुत चांस है. अब क्या होगा, यह देखना होगा.