आज के समय में महिलाएं हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक सवाल किया है, जो काफी ज्यादा सुर्खियों में आ गया है। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल करते हुए पूछा है कि यदि भारतीय वायुसेना में (IAF) में एक महिला राफेल लड़ाकू विमान उड़ा सकती है, तो सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) ब्रांच के जेंडर-न्यूट्रल पदों पर कम हमला अधिकारी क्यों हैं?
क्या है मामला?
दो महिला अधिकारियों अर्शनूर कौर और आस्था त्यागी ने याचिका दायर की थी कि उनके चौथा और पांचवां रैंक होने के बावजूद, मेरिट में अपने पुरुष साथियों की तुलना में ज्यादा होने के बाद भी, महिलाओं के लिए कम वैकेंसीज की वजह से जेएजी डिपार्टमेंट के लिए उन्हें सेलेक्ट नहीं किया गया।
इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें, दोनों महिला अधिकारियों ने पुरुषों और महिलाओं के लिए असमानुपातिक रिक्तियों को चुनौती दी थी और कहा था कि उनका चयन नहीं किया जा सकता क्योंकि कुल छह पदों में से महिलाओं के लिए केवल तीन रिक्तियां थी।
SC ने दिए यह निर्देश
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा, "पहली नजर में हम याचिकाकर्ता अर्शनूर कौर द्वारा स्थापित मामले से संतुष्ट हैं। हम प्रतिवादियों को निर्देश देते हैं कि वे जज एडवोकेट जनरल (JAG) के रूप में नियुक्ति के लिए अगले ट्रेनिंग कोर्स में उसे शामिल करने से जो भी कार्रवाई जरूरी है, उसे शुरू करें।"
बेंच ने एक अखबार के लेख का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि एक महिला पायलट राफेल लड़ाकू विमान उड़ाएगी और कहा कि ऐसी स्थिति में उसे युद्ध बंदी के रूप में भी लिया जा सकता है।
जस्टिस दत्ता ने केंद्र और सेना की ओर से पेश एडशिनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा, "अगर इंडियन एयरफोर्स में किसी महिला के लिए राफेल लड़ाकू विमान उड़ाना जायजा है, तो सेना के लिए जेएजी में ज्यादा महिलाओं को अनुमति देना इतना मुश्किल क्यों है?"
क्या दलील पेश की गई?
बेंच को बताया गया कि दूसरी याचिकाकर्ता आस्था त्यागी कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान भारतीय नौसेना में शामिल हो गई थीं। इसके बाद अदालत ने पदों को जेंडर-न्यूट्रल होने का दावा करने के बावजूद महिलाओं के लिए कम पद निर्धारित करने के लिए केंद्र से सवाल किया।
ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सेना में जेएजी ब्रांच सहित महिला अधिकारियों की भर्ती और नियुक्ति इसकी परिचालन तैयारियों को ध्यान में रखते हुए एक प्रगतिशील प्रक्रिया है।
सुप्रीम कोर्ट के सवाल
सर्वोच्च न्यायालय ने आगे पूछा कि पदों को जेंडर-न्यूट्रल क्यों कहा गया है, जबकि उच्च योग्यता वाली महिला उम्मीदवार योग्य नहीं थीं, क्योंकिय रिक्तियां अभी भी लिंग के आधार पर विभाजित हैं।
जस्टिस मनमोहन ने कहा कि अगर 10 महिलाओं योग्यता के आधार पर जेएजी के लिए योग्य हैं, तो क्या उन सभी को जेएजी ब्रांच के अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाएगा।