- बिना ऑर्डर नहीं बनाते हैं मूर्तियां, सिर्फ तीन महीने ही बनाते हैं बाल गणेश की मूर्ति
- हर साल दशहरे से लेकर 31 दिसंबर तक ही लेते हैं ऑर्डर
भगवान गणेश के तरह-तरह के बाल रूप को मिट्टी से गढ़ने वाले विशाल शिंदे की शोहरत दुनिया भर में है। आलम यह है कि वो एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने गणेश मूर्तियां बनाने में एक क्रांति ला दी है, कायनात उनके हाथों की जादूगरी की कायल है।
विशाल शिंदे की उंगलियां सिर्फ मिट्टी से बातें करती हैं। दिमाग सिर्फ गणेश के अलग-अलग रूप को सोचता है। आंखें सिर्फ रंगों से खेलती हैं। न भूख, न प्यास। सिर्फ सोना, जागना, ओढ़ना, खाना-पीना सब गणेश की मूर्तियों में। यही वजह है जब विशाल शिंदे गणेश की मूर्ति गढ़ते हैं तो लगता है, गणेश बस हमसे अभी बात करने ही लगेंगे, कभी लगता है उफ्फ, गणेश खेलते-खेलते थक गए, कभी लगता है खाना खाने के बाद थोड़ा अलसा रहे हैं। गणेश के इतने रूप न कभी किसी ने सोचे, न देखे।
विशाल बताते हैं कि मेरे पिता सूर्यकांत शिंदे बचपन से मूर्तियां बनाते थे, क्योंकि हम लोग लाल बाग के पास एक चॉल में रहा करते थे। पिता लाल बाग जाकर माहिर कलाकारों को देखते रहते और मूर्तियां बनाते रहते। उन्होंने 16 साल की उम्र में मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया था। पिता से ही विशाल ने सीखा, लेकिन वे इसे पारिवारिक रवायत मान ढोना नहीं चाहते थे बल्कि इसे सलीके, कायदे और कुछ हटकर करना चाहते थे। उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट से बाकायदा मूर्ति-शिल्प में पढ़ाई की।
विशाल मूर्तियां बनाने के लिए शआड़ूमाती मिट्टी का प्रयोग करते हैं। रंगों के चयन को लेकर वे बहुत समझ वाले माने जाते हैं। पहले वे अपनी चॉल से ही कामकाज करते थे। दस साल पहले ही लोअर परेल की ए टू जेड एंडस्ट्रियल स्टेट में उन्होंने एक स्टूडियो बनाया। अगली प्लानिंग के बारे में वे बताते हैं कि अगले साल से रंग भी बेचना शुरू करेंगे।
मूर्तियों की खासियत है उनका बाल स्वरूप
विशाल शिंदे से पहले भी सदियों से गणेश मूर्तियां बनती आई हैं, तो फिर शिंदे का कमाल क्या है। वे बताते हैं बाल स्वरूप, गजमुख, कलर कॉम्बिनेशन, स्किन टोन, बेहद सफाई से तराशी गई मूर्तियां, काम के लिए ईमानदारी, काम से बेपनाह प्रेम, मेरा जीवन ही गणेश, मिट्टी और रंग हैं। हर लम्हे विशाल गणेश के भाव सोचते रहते हैं, ऐसे भाव कि जो देखे बस लगे कि गणेश उसके दिल में उतर गए।
कोई मार्केटिंग नहीं की
विशाल बताते हैं कि उन लोगों ने कभी इसकी मार्केटिंग नहीं की। माउथ पब्लिसिटी होती चली गई। इस शोहरत की एक वजह वे बताते हैं कि शायद हमने कॉमर्शियल और शोहरत के लिए शुरू ही नहीं किया था,इसलिए हमारे साथ ऐसा हुआ। हमारे तो दिल के करीब थी यह क्रिएटिविटी। हमें इसके अलावा कुछ सूझता ही नहीं था।
वे बताते हैं कि मैं यह मूर्तियां सिर्फ बनाने के लिए नहीं बनाता हूं कि पैसा कमाना है, बना दो। वे बताते हैं कि मुझे इतनी परफेक्शन चाहिए होती है कि सूंड कितनी रखनी है, शॉल कितना रखना है, मुकुट कितना होना चाहिए, क्या चीज कितने इंच, किस रंग की होनी चाहिए। परफेक्शन में जरा सा भी समझौता मंजूर नहीं। यहां तक कि मैं ग्राहक की बात भी उसमें नहीं मानता हूं। एटॉनॉमी बराबर होनी चाहिए। प्रमाणिक लगना चाहिए, क्वालिटी से समझौता नहीं। भाव महसूस होने चाहिए।
2000 से 18,000 कीमत
विशाल शिंदे की बनाई मूर्तियों की कीमत 2000 से 18,000 रुपए तक रहती है। वे मिट्टी और फाइबर दोनों से मूर्तियां बनाते हैं। फाइबर मूर्तियों की कीमत 2000 से शुरू होती है। मिट्टी की मूर्तियों की कीमत 12000 से 18000 तक है। सिर्फ ट्रेडिशनल रूप बनाते हैं। एक मूर्ति में तीन से चार दिन का समय लग जाता है। वे इस काम को सिर्फ तीन महीने यानी गणेश चतुर्थी के मौके पर ही करते हैं। इसके लिए एडवांस में ऑर्डर लेते हैं। बाकी दिन वे ऑर्डर पर दूसरी मूर्तियां बनाते हैं। जैसे चौराहों पर लगने वाली मूर्तियां।
2023 तक फुल बुकिंग है, कोई आज खरीदने आएगा तो नहीं मिलेगी
विशाल बताते हैं कि मैं सिर्फ ऑर्डर पर मूर्ति बनाता हूं। 2023 तक की फुल बुकिंग है। आज अगर मेरे पास कोई मूर्ति लेने आए तो मैं नहीं दे सकता, क्योंकि यह सब दो-दो साल पुराने ऑर्डर हैं। वे बताते हैं कि दो-तीन साल पहले अंबानी परिवार के स्टाफ से कोई मूर्ति लेने आए थे, जिन्हें हमने मना कर दिया था। ऐसे-ऐसे वीवीआईपी आते हैं कि नाम नहीं बता सकते हैं, लेकिन हम अपने उसूल से समझौता नहीं करते हैं।
मैं एक सीज़न में सिर्फ 270 से 300 मूर्ति बनाता हूं, उससे ज्यादा नहीं। हालांकि, ऑर्डर इतना है कि सारा साल भी बनाऊं तो काम खत्म न हो लेकिन मेरा अपना तरीका है काम करने का। ऑर्डर सिर्फ दशहरे से लेकर 31 दिसंबर तक लिए जाते हैं।
तीन भाई हैं, विशाल मूर्ति बनाते हैं दो भाई दूसरा काम देखते हैं
विशाल शिंदे तीन भाई हैं। इनमें से विशाल मूर्तियां तराशते हैं, सुनील शिंदे ऑफिस का काम, डिलीवरी, डिस्पैच, ग्राहक, मेहमान सब देखते हैं और तीसरे भाई भूषण शिंदे बाहर का कामकाज, जिसमें मटेरियल आदि का वक्त पर अरेंज करना शामिल है। विशाल की बनाई मूर्तियां दुनिया में यूएस, यूके, सिंगापुर, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया तक जाती हैं लेकिन यहां मिट्टी की बनाई मूर्तियां नहीं जा सकती हैं इसलिए फाइबर की बनाई मूर्तियां जाती हैं।