छिंदवाड़ा के पांढुर्ना और सावरगांव पक्ष के बीच मंगलवार सुबह से ही गोटमार मेला जारी है। भारी पुलिस बल की मौजूदगी में दोनों ही तरफ से एक-दूसरे पर पथराव किए जा रहे हैं। सुबह 6 बजे ही सावरगांव और पांढुर्ना पक्ष के लोगों ने मां चण्डी की पूजा के बाद नदी में झंडा लगाया। इसके तुरंत बाद यहां दोनों तरफ से पत्थर बरसाना शुरू हो गया। 11 बजे तक लगभग 20 लोग इस पत्थरबाजी में घायल हो गए, जिनका इलाज किया जा रहा है। एहतियातन मेले में आकस्मिक चिकित्सा की व्यवस्था भी बनाई गई है, लेकिन जो गंभीर रूप से घायल हुए हैं उन्हें सरकारी अस्पताल में रेफर किया गया है।

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, प्रशासन ने गोफन (एक प्रकार का जाल जिसमें भरे हुए छोटे-छोटे कंकड़ पत्थर बांधकर घुमाने से चारों ओर तेजी से गिरते हैं और चोट पहुंचाते हैं।) पर पूरी तरीके से प्रतिबंध लगाए हैं, बावजूद इसके कुछ लोग गोफन चला कर भी गोटमार खेल रहे हैं। गोटमार मेला स्थल पर SP विवेक अग्रवाल और कलेक्टर सौरभ सुमन मौजूद हैं। साथ ही अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी मोर्चे पर तैनात किए गए हैं।

बताया जा रहा है कि शाम तक घायलों की संख्या बढ़ भी सकती है। एहतियात के तौर पर पुलिस को भी यहां तैनात किया गया है। जानकारी के मुताबिक, पांढुर्ना में गोटमार के कारण कलेक्टर ने धारा 144 प्रभावी की है, बावजूद इसके मेले के आयोजन पर कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। लोग प्रशासन के सामने ही नियम तोड़कर गोटमार खेल रहे हैं।

गोटमार देखते कलेक्टर और एसपी।

गोटमार मेले के पीछे की कहानी...

गोटमार मेले के आयोजन के संबंध में कई कहानियां और किवंदतियां हैं। इसमें सबसे प्रचलित और आम किवंदती प्रेम कहानी से जुड़ी है। इसमें दो पात्र हैं। आज तक दोनों के नाम सामने नहीं आए। कहानी यह है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या को पांर्ढुना के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांर्ढुना का लड़का अपने दोस्तों के साथ सावरगांव पहुंच गया। यहां लड़की को भगाकर अपने साथ ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था। नदी में पानी भरा हुआ था।

सावरगांव गांव के लोगों को जब यह घटना पता चली तो वे नदी पार कर रहे प्रेमी जोड़े और उसके दोस्तों पर पत्थर बरसाने लगे। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांर्ढुना गांव के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दिया। पांर्ढुना और सावरगांव के बीच इस पत्थरों की बौछार से प्रेमी जोड़े की जाम नदी में ही मौत हो गई।

प्रेमी जोड़े की मौत के बाद दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ। दोनों के शव को उठाकर किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है।

सुबह से शुरू होता है मेला, पूजा के बाद पत्थरबाजी

दोनों गांव के लोग जाम नदी के किनारे ढोल-ढमाकों और पत्थरों के बीच जुटते हैं। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर पत्थर मारकर पीछे ढकेलने का प्रयास करते हैं। दोपहर बाद पत्थरों की बारिश बढ़ जाती है। खिलाड़ी कुल्हाड़ी लेकर झंडे को तोड़ने के लिए वहां तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। इसे रोकने के लिए साबरगांव के खिलाड़ी उन पर पत्थरों की बारिश कर देते हैं।

झंडा के कटते ही रुक जाती है पत्थरबाजी

शाम को पांर्ढुना पक्ष के खिलाड़ी पूरी ताकत के साथ चंडी माता का जयघोष एवं भगाओ-भगाओ के साथ सावरगांव के पक्ष के व्यक्तियों को पीछे ढकेल देते हैं और झंडे को कुल्हाडी से काट देते हैं। जैसे ही झंडा टूट जाता है। दोनों पक्ष पत्थर मारना बंद करके मेल-मिलाप करते हैं और गाजे-बाजे के साथ चंडी माता के मंदिर में झंडे को ले जाते हैं।

नहीं तो इस तरह होता है समझौता

झंडा न तोड़ पाने की स्थिति में शाम साढ़े छह बजे प्रशासन द्वारा आपस में समझौता कराकर गोटमार बंद कराया जाता है।