मध्यप्रदेश में सरकारी पदों पर प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट 14 सितंबर को फैसला सुना सकता है। हाईकोर्ट ने पदोन्नति नियम में आरक्षण, बैकलॉग के खाली पदों को कैरी फॉरवर्ड करने और रोस्टर संबंधी प्रावधान को संविधान के विरुद्ध मानते हुए इन पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय ने याचिका दायर की थी, जिस पर फैसला बाकी है।
सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार का पक्ष रखने वाले सीनियर एडवोकेट मनोज गोरकेला के मुताबिक, 14 सितंबर को होने वाली सुनवाई में अंतिम फैसला आ सकता है। मामले को लेकर अन्य राज्यों के पक्ष भी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हो चुके हैं। प्रदेश में पदोन्नति नियम 2002 के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति होती थी, पर 2016 में हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।
दरअसल, अनारक्षित वर्ग की ओर से अनुसूचित जाति-जनजाति को दिए जा रहे आरक्षण की वजह से उनके अधिकार प्रभावित होने को लेकर हाई कोर्ट में 2011 में 24 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें सरकार द्वारा बनाए मप्र पब्लिक सर्विसेज (प्रमोशन) रूल्स 2002 में एससी-एसटी को दिए गए आरक्षण को कठघरे में रखा गया था।
2016 में हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को राज्य में एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने के नियम को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की बेंच ने कहा है कि यह नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 व 335 के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र को दिए गए दिशा-निर्देश के खिलाफ है।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए। ऐसे में अब पदोन्नति तभी हो सकती है, जब न्यायालय इसकी अनुमति दे। सरकार ने इसे लेकर न्यायालय से अनुरोध भी किया था, पर अनुमति नहीं मिली। इससे सबसे ज्यादा नुकसान उन कर्मचारियों व अधिकारियों को हुआ, जो पिछले 5 साल में रिटायर हो गए, जिसकी संख्या करीब 1 लाख बताई जाती है।
2 साल बढ़ाई थी सेवानिवृत्ति की आयु
पदोन्नति में आरक्षण का मामला लंबित होने से अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नत हुए बिना ही सेवानिवृत्त होते जा रहे थे। इसे लेकर सरकार के खिलाफ कर्मचारियों में नाराजगी भी थी। इसे देखते हुए शिवराज सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा कदम उठाते हुए सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी, जो अभी भी जारी है।
यूपी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट उत्तरप्रदेश की तत्कालीन मायावती सरकार के निर्णय को पलट चुका है। अदालत ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण नहीं हो सकता। माया सरकार ने 2008 में यह निर्णय लिया था। इसे जनवरी 2011 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले को राज्य सरकार ने शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दलवीर भंडारी, दीपक मिश्रा और एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बहाल रखा। अदालत ने कहा था कि उत्तरप्रदेश सरकार का निर्णय संविधान के अनुकूल है। केवल भर्ती के समय ही आरक्षण का लाभ मिल सकता है।
नए नियम का ड्राफ्ट तैयार
सरकार नए पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार कर चुकी है। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार, अपर मुख्य सचिव गृह डॉ. राजेश राजौरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की समिति बनाई गई थी। समिति ने सभी पहलुओं पर विचार करने और विधि विशेषज्ञों से अभिमत लेने के बाद नए नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है। अब इसे कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है, जिसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रस्ताव भी भेज दिया है।