छत्तीसगढ़ के बस्तर का राजनीतिक इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। यहां भाजपा के बलिराम कश्यप व कांग्रेस के महेंद्र कर्मा दोनों दिग्गज नेताओं का बड़ा नाम रहा है। अब इलाके में कवासी लखमा का दबदबा भी देखने को मिलता है। 2011 में पूर्व सांसद बलिराम कश्यप की मौत के बाद बस्तर में भाजपा को सबसे बड़ा झटका लगा। यही वजह है कि कभी बस्तर की 12 विधानसभा सीटों में 11 सीटों पर अपनी पकड़ बनाने वाली भाजपा का अब सूपड़ा साफ हो गया है। इसी वजह से अब राष्ट्रीय स्तर के भाजपा नेताओं को बस्तर में चिंतन शिविर करना पड़ रहा है।

ऐसे कम होती गई सीटें
राज्य बनने के पहली बार 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 12 में से 9 सीटों पर कब्जा जमा लिया था। उस समय ये माना गया था कि भाजपा को बलिराम कश्यप के सहारे वोट मिले हैं। इसके बाद 2008 में भी भाजपा ने 11 सीटों पर कब्जा जमाया। कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई। 2013 के चुनाव में भाजपा 4 सीटों पर सिमट गई। 2018 के चुनाव में उसे सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा। वह भी 2019 में दंतेवाड़ा से भाजपा विधायक भीमा मंडावी की हत्या के बाद उसके हाथ से चली गई। उपचुनाव में कांग्रेस की देवती कर्मा ने भीमा मंडावी की पत्नी को हरा दिया। इस प्रकार बस्तर में भाजपा के पास एक भी सीटें नहीं हैं।

भीमा मंडावी से हार गए महेंद्र कर्मा
बस्तर को महेंद्र कर्मा का गढ़ भी कहा जाता था। बलिराम कश्यप के साथ महेंद्र कर्मा एक ऐसे नेता थे, जिनकी पकड़ इलाके में काफी मजबूत थी। बस्तर में जब भी चुनाव होते थे तो यहां कांग्रेस-भाजपा नहीं बल्कि महेंद्र कर्मा और बलिराम कश्यप का नाम चलता था। उस समय भी कांग्रेस को चुनाव में काफी उतार-चढ़ाव देखना पड़ा था। साल 2008 के विधानसभा चुनाव में दंतेवाड़ा विधानसभा सीट से भाजपा ने महेंद्र कर्मा के सामने भीमा मंडावी को उतारा था। भीमा ने चुनाव जीत कर सीट अपने कब्जे में कर ली थी। पर 2013 में हुए झीरम हमले में बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर महेंद्र कर्मा की मौत हो गई। इसके बाद इस क्षेत्र में कवासी लखमा का दबदबा शुरू हो गया।

आज तक नहीं हारे कवासी लखमा
महेंद्र कर्मा और बलिराम कश्यप के बाद बस्तर की राजनीति में यदि कोई तीसरा नाम है तो वह कवासी लखमा का है। कवासी लखमा कोंटा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते आ रहे हैं। 2003 से लेकर 2018 तक जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं उनमें कवासी लखमा अब तक एक भी चुनाव नहीं हारे हैं। बस्तर की राजनीति में कवासी लखमा की जबरदस्त पकड़ है। साल 2008 के चुनाव में जब महेंद्र कर्मा की दंतेवाड़ा सीट सहित बस्तर संभाग की 12 में से 11 सीटों पर BJP ने जीत हासिल की थी तो उस समय भी लखमा ने कोंटा से सीट जीत कर कांग्रेस की नाक बचा ली थी। वहीं कोंटा विधानसभा सीट को अपने कब्जे में लेने भाजपा के भी पसीने छूटते हैं।

भाजपा कर रही चिंतन शिविर
साल 2003 व 2008 के चुनाव में भाजपा का बस्तर में जबरदस्त वर्चस्व रहा है। हालांकि, 2013 के चुनाव में भाजपा केवल 4 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी। 2018 के चुनाव में बस्तर से भाजपा का सूपड़ा पूरी तरह साफ हो गया है। ऐसे में भाजपा के माथे में चिंता की लकीर देखने को मिल रही है। इसी कारण भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को बस्तर में अपना चिंतन शिविर लगाना पड़ा है। मंगलवार की शाम से इस इस चिंतन शिविर का शुभारंभ हो गया है। इस शिविर में साल 2023 के विधानसभा चुनाव पर भाजपा फोकस करेगी। इस शिविर का आज दूसरा दिन है। 10 बजे के बाद एक बार फिर बड़े दिग्गज नेताओं के साथ बैठक शुरू होगी। आज की यह बैठक दिनभर चलेगी।

पूर्व CM डॉ रमन बोले - चेहरे बदलते रहते हैं
चिंतन शिविर में पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व छत्तीसगढ़ के पूर्व CM डॉ रमन सिंह ने कहा कि, चुनाव में परिवर्तन होते रहता है। चेहरे भी बदलते हैं। पूर्व CM के इस बयान ने साफ तौर पर संकेत दिया है कि बस्तर में आने वाले चुनाव में भाजपा में कई नए चेहरों को देखने मिलेगा। ऐसे में भाजपा ने जिन लोगों को टिकट देकर पिछला विधानसभा चुनाव लड़ाया था वो भी अब चिंतित हो गए हैं। हालांकि यह बात तो तय है कि 2023 के चुनाव में भाजपा में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है।